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दशहरा: भीतर के रावण का भी दहन करे

दशहरा: भीतर के रावण का भी दहन करे

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आज दशहरा है, हिंदू धर्म के अंतर्गत दशहरा बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रमुख त्योहार है। यह सत्य की असत्य पर जीत है, अच्छाई की बुराई पर जीत है। दशहरा इस बात का प्रतीक है कि बुराई चाहे कितनी भी ताकतवर क्यों ना हो एक न एक दिन इसका अंत होना तय है। प्राचीन काल से निरंतर यह प्रथा चली आ रही है। रावण, कुंभकरण, मेघनाद के पुतले बनाकर बुराई के प्रतीक के रूप में जलाया जाता है। परंतु इस बार कोरोनावायरस के कारण रावण दहन नहीं मनाया जाएगा और जहां इसका आयोजन होगा वहां भी बहुत सीमित दायरे में होगा, सामाजिक दूरी को ध्यान में रखकर किया जाएगा।

देखा जाए तो सदियों से हम बुराई के रूप में पुतले जलाते आएं हैं, बुराई को नष्ट करते आए हैं। परंतु क्या हम समाज की बुराई, गलत मानसिकता का पूर्ण दहन करने में सफल हुए हैं। यह केवल हमारी आस्था से जुड़ी एक परंपरा रह गई है, हमारी मानसिकता मात्र है जो सदियों से चली आ रही है। पुतलों रूपी बुराई को नष्ट करके हम निशचिंत हो जाते हैं कि बुराई से, अन्याय से छुटकारा मिल गया। अब अच्छाई की जीत होगी। परंतु सही मायनों में हम बुराई से जीत नहीं पाएं है। हजारों, लाखों की भीड़ इकट्ठी होती है बुराई को, अन्याय को जलाने के लिए लेकिन हम में से कितने लोग ऐसे हैं जो सही अर्थों में, वास्तव में अपने मन से बुराई को, अन्याय को,अपनी गलत मानसिकता को समाप्त कर के आते हैं।

जलाते हो हर साल रावण को, बताओ क्या अधिकार रखते हो। जब बन नहीं सकते हो राम तुम क्यों राम होने का ढोंग करते हो?

यह भी केवल एक परंपरा, प्रथा बन गई है जिसे हम निरंतर आगे बढाते जा रहें हैं। यदि सही अर्थों में हमने बुराई को जलाया होता तो समाज में इतना अन्याय, अपराध नहीं होता। जिस जोश के साथ हम प्रत्येक वर्ष रावण दहन के लिए जाते हैं उतनी ही ताकत से समाज में अन्याय, अपराध फैलता जा रहा है। दिन प्रतिदिन समाज में अन्याय, अपराध, अराजकता, व्याभिचार, भ्रष्टाचार, दहेज प्रथा ,महिलाओं पर होने वाले अत्याचार, दुष्कर्म जैसी अनेक बुराइयां अपने पैर पसार रही है। लड़कियां, महिलाएं आज देश में सुरक्षित नहीं हैं।

दहन पुतलो का ही नहीं, बुरे विचारो का भी करना होगा। श्री राम का करके स्मरण, हर रावण से लड़ना होगा

बुराई के प्रतीक को जलाने के बजाय हम इन बुराइयों को ही समाज से क्यों नहीं निकाल फेंकते। तभी होगी सही मायनों में अच्छाई की जीत। हम केवल परंपरा, प्रथा को मनाते हैं, भीड़ का हिस्सा बन कर रह जाते हैं। वास्तव में हम मन से, आत्मा से इन बुराइयों को छोड़ नहीं पाते हैं।

बहुत से लोग इस बार हताश हुए हैं, आहत हुए हैं, कि इस बार वह दशहरे पर रावण दहन में शामिल नहीं हो पाएंगे। परंतु सही मायनों में यह एक ऐसा मौका है जब हम सिर्फ प्रतीक के रूप में नहीं बल्कि वास्तव में समाज से अन्याय, अत्याचार ,दुष्कर्म जैसी अनेक बुराइयों को नष्ट करने का प्रण लें, एक नयी शुरूआत करें और सदियों से चली आ रही इस प्रथा को जीवंत बना दें। इस बार रावण दहन भीड़ का हिस्सा बन कर नहीं बल्कि अपने आस पास, घर परिवार, समाज में हो रही कुरीतियों, बुराइयों, अत्याचारों को नष्ट करके वास्तव में इनका दहन करके सच्चे अर्थों में दशहरा मनाएं। अच्छाई की बुराई पर जीत हासिल करें। अपने स्वयं से परिवार से शुरू करके धीरे धीरे पूरे समाज में यह विजय हासिल होगी। यह काम एक दिन में नहीं हो सकता इसमें समय लगेगा पर हम शुरूआत तो कर सकते हैं, एक कोशिश तो कर सकते है। इसी सकारात्मक सोच के साथ आप सबको दशहरे अर्थात विजयदशमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं।

अधर्म पर धर्म की विजय, असत्य पर सत्य की विजय बुराई पर अच्छाई की विजय, पाप पर पुण्य की विजय, अत्याचार पर सदाचार की विजय, क्रोध पर दया, क्षमा की विजय अज्ञान पर ज्ञान की विजय


Dr Rinku Sukhwal

M.A. (Political Science, Hindi), M.Ed., NET, Ph.D. (Education) Teaching Experience about 10 years (School & B.Ed. College) Writing is my hobby.

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