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इतिहास के पन्नों में उर्मिला कही खो सी गयी

इतिहास के पन्नों में उर्मिला कही खो सी गयी

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समय के चक्र में उसकी गाथा कुछ धुंधली सी हो गयी

इतिहास के पन्नों में उर्मिला कही खो सी गयी.

 

वैदेही का ही वो स्वरुप थी

सतित्वा बल में वो भी अनसुइया समरूप थी

सूर्य तेज का वो जिवंत प्रारूप थी

महाकाव्य के सागर से उसकी यश धारा एक सी हो गयी

इतिहास के पन्नों में उर्मिला कही खो सी गयी.

 

शब्द कैसे दे पाएंगे उसकें त्याग को परिभाषा

त्याग दिए थे उसने अपने सुख , छोड़ दि थी अपने गृहस्थ जीवन की हर अभिलाषा

एक बार भी नहीं किआ उसने विरोध, ना की उसने साथ रहने की आशा

जानती थी वो उसका त्याग ही बनेगा लक्ष्मण के वीरगाथा की भाषा

कितनो को मिला यश रामगाथा से पर इसे दुनियां भूल सी गयी

इतिहास के पन्नों में उर्मिला कही खो सी गयी.

 

कहा था उसने… तुम वन जाओ मेरे नाथ

मेरी चिंता न करना.. बस ध्यान रहे अकेले नहीं रहे रघुनाथ

उनकी सेवा है धर्म तुम्हारा हमेशा रहना उनके ही साथ

किया धारण जैसे धरती तुमने, उसी धैर्य को मैं भी करूंगी आत्मसाद

उसके यशगाथा की लौ कुछ बुझ सी गयी

इतिहास के पन्नों में उर्मिला कही खो सी गयी.

 

आज के युग को उसका महत्व पहचानना होगा

प्रेम का उदाहरण जो उसने दिए, आज हमे उसे मानना होगा

वो भी पूज्य है उसके त्याग का मूल्य आज हमे जानना होगा

एक महासती की गाथा कही अनसुनी सी हो गयी

इतिहास के पन्नों में उर्मिला कही खो सी गयी.

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(उर्मिला मिथिला के राजा जनक की बेटी और रानी सुनैना और सीता की छोटी बहन थीं। उनका विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के तीसरे पुत्र लक्ष्मण से हुआ था। उनके दो पुत्र थे - अंगद और चंद्रकेतु। उर्मिला सीता के लिए उतना ही समर्पित थी जितना लक्ष्मण राम को। हालाँकि वह जानती थी कि सीता उसकी सगी बहन नहीं है, लेकिन यह तथ्य कभी उनके बंधन के बीच नहीं आया।)


Tushar Dubey

एक आवाज़ हूँ!!!!!!! तुम्हे जगाने आया हूँ

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