सरस्वति नमौ नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम: ।
वेदवेदान्तवेदाङ्गविद्यास्थानेभ्य एव च ॥
भावार्थ : सरस्वती को नित्य नमस्कार है, भद्र काली को नमस्कार है और वेद, वेदान्त, वेदांग तथा विद्याओं के स्थानों को प्रणाम है ।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने ।
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोऽस्तु ते ॥
भावार्थ : हे महा भाग्यवती ज्ञान रूपा कमल के समान विशाल नेत्र वाली, ज्ञान दात्री सरस्वती मुझको विद्या दो, मैं आपको प्रणाम करता हूँ ।
बसंत पंचमी ज्ञान उत्साह और ऋतु का पर्व है। साथ ही भारत में यह गंगा जमुनी सभ्यता का प्रतीक भी है। पूरे भारत में जिस उत्साह से बसंत पंचमी का त्यौहार घरों, मंदिरों और शिक्षा संस्थानों में मनाया जाता है।
बसंत पंचमी एक रूप है। हजरत निजामुद्दीन औलिया की मजार पर हर साल बसंत पंचमी का पर्व देखने योग्य होता है। हर तरफ सरसों के पीले फूलों की खुशबू मन को मोह लेती है। अमीर खुसरो के गीत और कव्वाली का संगीत वातावरण को और मोहक बनाता है। इसके पीछे एक कहानी है कहते हैं हजरत निजामुद्दीन के प्रिय भतीजे की मृत्यु के बाद वे बहुत उदास रहने लगे थे। उनके शिष्यों ने उन्हें बहुत तरीके से खुश करने की कोशिश की पर सफल ना हो सके। उनके प्रिय शिष्य यह सब देख बहुत दुखी रहते। उन्होंने यह ठान लिया की कुछ भी हो वे अपने गुरु की उदासी हर हल में दूर करेगे। अमीर खुसरो ने एक दिन देखा कि कुछ औरतें हाथ में सरसों का फूल लिए पीले वस्त्र पहने गाती हुई मंदिर की ओर जा रही थी। पूछने पर पता चला कि आज बसंत पंचमी है और वह अपने प्रिय ईश्वर को खुश करने के लिए मंदिर जा रही हैं। अमीर खुसरो को कुछ सोचा और वे पीले फूल और पीली पीली चुन्नी को ओढ अपने गुरु निजामुद्दीन औलिया के आगे खड़े हो गाने लगे। उनकी इस हरकत पर उनके गुरु बहुत खुश हुए। और कहते हैं तब से हर साल बसंत पंचमी को यह त्यौहार निजामुद्दीन आलिया मनाने लगे। आज भी यह परंपरा कायम है। अगर आप दिल्ली में है और बसंत पंचमी पर निजामुद्दीन में ना जाए तो बहुत कुछ देखने से वंचित रह जाएंगे। वहां का पूरा वातावरण जिस तरह से भक्ति और संगीत से सरोबर रहता है। उसकी छटा देखने योग्य होती है। चारों और अमीर खुसरो की गीतों की गूंज सुनाई देती है:
आज बसंत मना ले सुहागन
आज बसंत माना ले ||
हजरत ख्वाजा संग खेलिए धमाल
बाइस ख्वाजा मिल बन आयो
तामें हजरत रसूल साहब जमाल
हजरत ख्वाजा संग-
अरब यार तेरो बसंत मनायो , सदा रखिए लाल गुलाल
हजरत ख्वाजा संग खेलिए धमाल ||
ऐसे कई गीत और कव्वाली वहां आपको सुनाई देंगे | तो आप भी अपना बसंत बनाएं | और अगर आप दिल्ली या उसके आसपास रहते हैं तो एक बार बसंत पंचमी पर हजरत निजामुद्दीन औलिया की मजार पर जरूर होकर आए | शुभ बसंत पंचमी
" >आज बसंत मना ले सुहागन आज बसंत माना ले ||