ए चांद, तू सदियों से साक्षी रहा है,
स्त्री के प्रेम, त्याग एवं समर्पण का।
युग बदल गये, रिवाज बदल गये है,
पर ना बदला चांद करवाचौथ का
इतिहास गवाह है कि स्त्री हर रंग में रंगी, संवरी है,
सावित्री बन यमराज से पति के प्राण छीन लाई है।
रणभूमि में योद्धा बनकर दुश्मन को धूल चटाई है।
कृष्ण प्रेम में मीरा बन गली गली लगन लगायी है।
आज अंतरिक्ष तक पहुंच अपना लोहा मनवाया है।
पर पति की चरण धूल से ही तन मन को संवारा है।
विज्ञान के इस युग में दुनिया बढ़ गई बहुत आगे है।
अंधविश्वास, पिछड़ापन चाहे स्त्री की अज्ञानता है।
कोई कुछ भी कहे ना बदली उसने मानसिकता है
मुख देखे बिना पति का जल भी न ग्रहण करती है।
प्रगतिशील आत्मनिर्भर और विचारों से वह स्वतंत्र है।
पर सिर पर घूंघट रख सोलह श्रृंगार मन से करती है।
समाज में पुरुष के बराबर अधिकार उसे ना मिला है।
तिरस्कार पाया, उपेक्षा सही, अपमान उसने झेला है।
फिर भी नारी ने कभी कुंठित मन से दुआ नहीं मांगी है।
सहर्ष उल्लास से पति के लिए मंगल कामना ही की है।
श्रद्धा और विश्वास की मूरत वो,उसका मूक समर्पण है।
संसार में ऐसी आस्था शायद ही कहीं और दिखती है।
पाश्चात्य संस्कृति का रंग आज हर त्योहार पर छाया है।
परिवर्तन की इस बयार से करवा चौथ भी नहीं अछूता है।
आधुनिकीकरण और व्यवसायीकरण की दौड़ जो हावी है।
पर करवाचौथ की गरिमा और पवित्रता अब भी कायम है।
क्योंकि नारी आज भी संस्कारों से जुड़ी है, वह जानती है,
कहां उसे नतमस्तक होना है और कहां विरोध दिखाना है।
करवा चौथ सिर्फ एक त्योहार या व्रत ही नहीं है, बल्कि नारी की शक्ति ,दृढ़ता एवं आस्था का प्रतीक है।
करवा चौथ के पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।