हम चाहें कितना ही सफल क्यों न हो जाएं, या फिर बौद्धिक रूप से स्वयं को परिपक्व हीं क्यों न समझे, फिर भी एक झुठा आरोपित विश्वास हमें कभीं भी सफल नहीं होने देगा। हमारी शुरूआत जिस शुन्य से हुई है, यह झुठा आरोपित विश्वास हमें, शुन्य पर ही अग्रेषित करवाएगा, यह एक सार्वभौमिक सत्य हैं, और अगर हम इसे ज्यों का त्यों स्वीकार करते है तो यह हमारी बुद्धि की शुन्य अवस्था का घोतक हैं, इन्हें स्वीकारने के कारण मैं और आप आज भी जीवित भी मृत प्राय है।
आज भी विकसित समाज और हमारी ही सुशिक्षित पीढ़ी अंधविश्वास को ज्यों का त्यों स्वीकारने में गौरवान्वित महसुस तो करतीं हैं, परन्तु हम में से कोई भी इसे समाप्त करने की पहल में अग्रणी भूमिका नहीं निभाते हैं।
हम आने वाली पीढियों से हस्तांतरित कुछ अच्छी परम्पराओं के साथ कुछ बुरी परम्पराओं को भी स्वीकार कर लेते हैं, इसमे भी हम खुश हो जाते है कि गलत है तो क्या हुआ, इसे तो स्वीकार करना तो पडेगा ही, यह तो पूर्वजों के द्वारा अग्रेषित पीढ़ी दर पीढ़ी प्राप्त हुई है, कुछ तरह का अज्ञात भय, कहीं सामाजिक बहिष्कार एवं विरोध, कुछ रूढिवादिता का अंधानुकरण इन्हे और दृढता, व मजबूत सम्बल प्रदान करते हैं। इसी में से अंधविश्वास भी एक हैं। यह एक सामाजिक बुराई एवं अपशब्द है, जिसका समाज के मध्य रहना न केवल हमारे लिए ही नहीं बल्कि मानसिक, राष्ट्रीय, आर्थिक, शारीरिक, विकास में भी अवरोध उत्पन्न करता हैं। सामाजिक रूप से पुरानी रूढिवादि विचारों से प्रभावित होकर किए जाने वाले कार्यो को जिसमें कारण अज्ञात होता हे उसे ही हम अंधविश्वास कहते हैं। इसे हम विचार रहित, श्वास भी कहते हैं।
लौकिक दृष्टि से देखा जाए तो मानसिक, शारीरिक, आध्यात्मिक दृष्टि से सारे कर्मो की प्रचेष्टाएँ एक हि दिशा में चले तो यह हमारा विश्वास हुआ। विचार करने के बाद इस पर युक्ति का प्रश्न नहीं देना, विश्वास की दृढता होगी। और जब मनुष्य का मन मृत अवस्था में पहुँच जाता हे तब इसे अंधविश्वास कहते हैं। यहाँ पर अंध का अर्थ है जो वस्तु जिस प्रकार की है उसे उस रूप में नहीं देखना। सूचना क्रान्ति, आधुनिकता, के युग में आज भी शिक्षित समाज का बहुत बडा हिस्सा अंधविश्वास, आडम्बर, रूढिवादिता, झूठी परम्पराएँ, मान्यताएँ, कई पाखंडियों के समूह के भँवर जाल में इस तरह फंसा हुआ हे कि इस माध्यम से ग्रामीण एवं शहरी जनता को इस तरह गुमराह किया जाता हैं जिनका कोई औचित्य ही नहीं होता हैं। आज भी हमारे समाज में अंधविश्वास को अनेक लोग मानते है। बिल्ली द्वारा रास्ता काटने पर रुक जाना, छींकने पर काम का न बनना,उल्लू का घर की छत पर बैठने को अशुभ मानना, बायीं आँख फड़कने पर अशुभ समझना, नदी में सिक्का फेंकना ऐसी अनेक धारणाएं आज भी हमारे बीच मौजूद है
1. 2017 में उत्तर भारत के अनेक राज्यों में महिलाओं की चोटी काटने की अनेक खबरे आई। अनेक महिलाओं ने इसे किसी शैतान, भूतप्रेत का काम बताया। डॉक्टरो से इसे मनोवैज्ञानिक बाधा बताई जिसमे महिलायें खुद ही अपनी चोटी काटने का काम कर रही थी।
2. 2017 में राजस्थान के अजमेर जिले में एक दलित महिला को उसके ही रिश्तेदार और पड़ोसियों ने डायन बताकर पीट पीटकर मार डाला गया। महिला के पति की मौत के बाद उसके ही ससुरालजन और गाँव वाले उसे डायन समझने लगे थे।
3. जनवरी 2018 में तेलंगाना, हैदराबाद में एक व्यक्ति ने एक तांत्रिक के कहने पर चंद्र ग्रहण के दिन अपनी पत्नी की लम्बी बिमारी को ठीक करने के लिए अपने बच्चे को छत से फेंक कर बलि दे दी।
4. जुलाई 2018 में दिल्ली के बुराड़ी इलाके में 11 लोग मोक्ष पाने के लिए फाँसी के फंदे से लटक कर मर गये। इस घटना से पूरे देश को चौंका दिया। इससे पता चलता है की अभी भी देश में अंधविश्वास की जड़े कितनी मजबूत है।
5. जून 2018 में ही जोधपुर में नवाब अली कुरैशी नामक व्यक्ति ने रमजान के पवित्र महीने में अल्लाह को खुश करने के लिए अपनी 4 साल की मासूम बेटी का गला रेतकर हत्या कर दी। उसके अनुसार उसने अल्लाह को खुश करने के लिए अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी दी।
6. 2018 में ही हरीयाणा में “जलेबी बाबा” नामक बाबा को गिरफ्तार किया गया जिसने तंत्र-मंत्र के नाम पर 90 से अधिक लड़कियों के साथ चाय में नशीला पदार्थ मिलाकर दुष्कर्म किया और 120 से अधिक अश्लील फिल्मे बना ली।
1. जिस कार्य शैली को आपके द्वारा स्वीकृत किया जा रहा हे,उस कार्य शैली तरिके को दूसरों को करने की सलाह देते हैं। अथवा दूसरो से सहभागिता की अपेक्षा रखते हैं।
2. आपके सुझाव को दूसरो के द्वारा अपनाए जाने के बाद भी,आपके और दूसरो के परिणाम में मेल नही होने के बाद भी, आप स्वयं या किसी और को वहीं सुझाव अपनाने की सलाह देते हैं।
3.और जब एक समान परिणाम प्राप्त नहीं होने को अनुकूलित परिस्थितियों का अभाव मानते हैं। तब आप पूर्ण रूप से अंधविश्वासी हैं।
यहाँ पर आप पहले एवं दूसरे चरण तक अंधविश्वासी नही कहलाएगें, क्योंकी जब तक आप अपने कार्य में दूसरों को सहभागी नहीं करते हैं। तब तक आप किसी भी रूप में अंधविश्वासी वाला कार्य नहीं कर रहे होते हैं। दूसरों के सम्मिलित होने मात्र से आप अंधविश्वास की श्रैणी में आ जाते हैं।
26 नवम्बर 1950 को सहर्ष आत्मार्पित संविधान के द्वारा भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाते हुए अंधविश्वास को त्यागने की सलाह स्पष्ट रूप से वर्णित की हैं जिसमें रीतीरिवाज, परम्पराओं को बनाए रखने की स्वतन्त्रता तो दे रखी हैं। वहीं दूसरी तरफ अंधविश्वास को समाज से दूर रखने का भी निर्णय लिया गया हैं। इसी संविधान के नियमों की पालना एवं इनका अनुसरण कर्नाटक मंत्रिमंडल के द्वारा भी किया गया हैं।
कर्नाटक मंत्रिमंडल ने पहल करते हुए ईविल प्रथाओं और अंधविश्वास के प्रतिबंध और उन्मूलन, विलम्ब और बहस को मंजूरी दी हैं। जिसे लोकप्रिय अंधविश्वास विरोधी विधेयक 2017 के रूप में जाना जाता हैं। अंधविश्वास के सम्बन्ध में क्या प्रतिबंधित किया गया हैं। क्या प्रतिबंधित नहीं किया गया हैं इसके सम्बन्ध में विभिन्न बिन्दूओं के आधार पर विवेचन प्रस्तुत किया हैं। कर्नाटक मंत्रिमंडल का अनुगमन करते हुए अन्य राज्यों के मंत्रिमंडल को भी अंधविश्वास को समाप्त करने में मुख्य भूमिका निभानी चाहिए। अगर विधेयक द्वारा राज्य विधान मंडल को मंजुरी दे दी गई तो ऐसी कई प्रथाओं को समाप्त करने की उम्मीद है, जो मनुष्य और जानवरों को शारीरिक एवं मानसिक रूप से अधिकांशतया नुकसान पहुँचाते हैं। हांलाकि केशलोचन, वास्तु,ज्योतिष जैसे कृत्यों पर रोक नहीं लगाई गई हैं। प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं।
क्या प्रतिबंधित नहीं किया गया हैं।
1.प्रदक्षिणा,परिक्रमा,एवं विभिन्न धर्म क्षेत्र की यात्रा करना।
2.हरिकथा, भजन, पूजा, कीर्तन, प्राचीन और पारम्परिक शिक्षण, कला, अभ्यास और प्रचार की एवं संचलन की शिक्षा।
3.मृत संतो के प्रचार प्रसार और धार्मिक प्रचारको के बारे में साहित्य का प्रचार, प्रसार एवं वितरण जो मानव की शारीरिक चोट का कारण नहीं हों।
4. घर, मंदिर, दरगाह, शिवालयों, चर्च, गुरूद्वारों, अन्य धार्मिक स्थानों पर प्रार्थना उपासना, धार्मिक अनुष्ठानों का प्रदर्शन जो शारीरिक चोट का कारण नहीं हों।
5. अन्य धार्मिक अनुष्ठानों से सम्बन्धित सभी धार्मिक उत्सव,त्यौहार प्रार्थना, जुलूस अन्य धार्मिक कार्य। जो मानव एवं पशुओं की शारीरिक चोट का कारण नहीं हों।
6.धार्मिक अनुष्ठानों में नाक एवं कान छेदन कार्य।
7.वास्तु शास्त्र के बारे में सलाह एवं अन्य ज्योतिषी कार्य, एवं ज्योतिषी सलाह।
क्या प्रतिबंधित किया गया हैं।
1.किसी भी व्यक्ति को अन्य लोगो के द्वारा, सार्वजनिक या धार्मिक स्थानों पर विभिन्न प्रथाओं को आधार मानकर छोड दिया जाता है, जो मानव गरिमा का उल्लंघन करते हैं। जिसे स्नाना के रूप में जाना जाता हैं। उस पर रोक लगाना।
2. किसी भी व्यक्ति को धार्मिक त्यौहार के उपलक्ष में आग पर चलने पर मजबुर करना जिसमें मनुष्य को शारीरिक चोट लगती हों। उस पर रोक लगाना।
3. जबडे के एक तरफ से जबडे के दूसरी तरफ एवं जीभ के मध्य छेदने का अभ्यास जिसमें शरीर के अंग विशेष में चोट लगती हों। उस पर रोक लगाना।
4. किसी भी व्यक्ति को साँप, बिच्छू काटने पर चिकित्सकीय उपचार लेने के लिए रोक लगाकर और इसके बदले मंत्र, या डोरा बनाकर देना, जिस वजह से उस व्यक्ति का पूर्ण इलाज न हो सके और वह मृत अवस्था में पहूँच जाए अथवा मर जाएँ। जो शारीरिक कष्ट के रूप में समाहित हो। उस पर रोक लगाना।
5. अंधविश्वास के नाम पर जीवों की हत्या पर रोक लगाना।
6. मंत्र के नाम पर कीमती चीजें, उपहार,खजानें की तलाश में किसी भी अमानवीय बुरे काम का प्रदर्शन करना, किसी भी व्यक्ति पर हमला, अश्लीलता का प्रदर्शन करना, दैनीक गतीविधियों पर प्रतिबंध लगा देना, गलत सलाह देना,व्यक्ति को उसके सही मार्ग से भटकाना, गुमराह करना, जैसे अमानवीय कृत्य पर रोक लगाना।
7.भ्रम फैलाकर पाखंड के तहत व्यक्ति को चेन या रस्सी से बांधना,जबरन शराब पिलाना,कोडे से पीटना, शरीर के किसी भी अंग पर उबलता गर्म पानी डालकर यातना देना, अमानवीय कृत्यों का अभ्यास जिससे मनुष्य, या किसी पशु विशेष को सर्वाधिक हानी पहूँच रही है उस पर रोक लगाना।
8. व्यक्ति को चिकित्सा उपचार करने या लेने पर रोकना और ऐसे कार्य करना जिससे मनुष्य के शरीर के किसी भी अंगो पर विशेष नुकसान पहूँच रहा हो उस पर रोक लगाना।
कर्नाटक मंत्रिमंडल के द्वारा यद्यपि इस सम्बन्ध में पहल की गई है। फिर भी वैज्ञानिक युग के बढते प्रभाव के बावजुद भी अंधविश्वास की जडे समाज से नही उखडी हैं। हमे न तो अंधविश्वासी होना हे और नहीं अंधविरोधी। हमें विज्ञानी होना हैं। आज के वैज्ञानिक युग में हर पक्ष विज्ञान के बिन्दूओं पर आधारित हैं।
अतः वैज्ञानिक पहलुओं में अंधविश्वास का कोई स्थान नही हैं। यह प्रक्रिया ठीक वैसे ही हे जैसे जहाँ प्रकाश हे वहाँ पर अँधेरा संभव ही नही हैं, और बिना प्रकाश के चारों और अँधेरा पसर जाता हैं। इस तरह से अंधविश्वास और वैज्ञानिक दृष्टिकोण एक दूसरे के पूर्ण विरोधी हैं। यह व्यक्ति के सामाजिक, मानसिक, राष्ट्रिय आर्थिक, शारीरिक,विकास में भी अवरोध उत्पन्न करता हैं साथ ही यह हमारी बौद्धिक निर्धनता को दर्शाता है, साथ ही यह हमारी भय निराशा, असहायता, व ज्ञान की कमी को भी प्रकट करता हैं। यह बहुत ही मूर्खतापूर्ण बात है कि जब इंसान किसी बात को समझ नहीं पाता है, और उस चीज के लिए अंधविश्वासी होकर दैवीय कारण समझकर डरने जगते हैं, इसलिए ही अंधविश्वास पर पूर्णतया रोक लगानी अनीवार्य हैं।
9. यह बहुत ही मूर्खतापूर्ण बात है कि जब इंसान किसी बात को समझ नहीं पाता है, और उस चीज के लिए अंधविश्वासी होकर दैवीय कारण समझकर डरने जगते हैं, इसलिए ही अंधविश्वास पर पूर्णतया रोक लगानी अनीवार्य हैं।
10. यह बहुत ही मूर्खतापूर्ण बात है कि जब इंसान किसी बात को समझ नहीं पाता है, और उस चीज के लिए अंधविश्वासी होकर दैवीय कारण समझकर डरने जगते हैं, इसलिए ही अंधविश्वास पर पूर्णतया रोक लगानी अनीवार्य हैं।
11. यह बहुत ही मूर्खतापूर्ण बात है कि जब इंसान किसी बात को समझ नहीं पाता है, और उस चीज के लिए अंधविश्वासी होकर दैवीय कारण समझकर डरने जगते हैं, इसलिए ही अंधविश्वास पर पूर्णतया रोक लगानी अनीवार्य हैं।