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आज़ादी रोटी नहीं हैं।

आज़ादी रोटी नहीं हैं।

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आज़ादी रोटी नहीं हैं।

आज़ादी रोटी नहीं,

मगर, दोनों में कोई वैर नहीं,

पर कहीं भूख बेताब हुई तो,

आज़ादी की खैर नहीं।

रामधारी सिंह दिनकर जी की यह पंक्तियां हमें आज़ादी के बाद की भूख , भुखमरी, ग़रीबी तीनों के विकराल रूप का दर्शन करातीं हैं। यह भूख स्वयं में ही एक गंभीर समस्या है। भूख , भुखमरी और ग़रीबी इन तीनों से विवश होकर ही जब कोई व्यक्ति भिखारी बन जाता है, तो वह व्यक्ति समाज के लिए अभिशाप बन जाता है और उसे सामाजिक समस्या करार दिया जाता हैं। 2010 के बाद विश्व में जिस तीव्र गति से विकास हुआ , और आर्थिक स्तर भी ऊँचा हुआ इसी के आधार पर 2020, 2030 और 2050 के तमाम सपने भी संजो लिए गए। लेकिन इन सभी के बीच किसी ने शायद विकसित दुनियां के उस तबके के बारे में नहीं सोचा, जहाँ फटे-टूटे फूस के आंगन में भूख, भुखमरी और भिखारी एक साथ जन्म लेते हैं। सभी अर्थशास्त्रियों चाहें विश्व आर्थिक विकास क्रम के कई दावें प्रस्तुत कर दें, लेकिन उनके खोखले सिद्धान्त जब इन कमज़ोर झोपडिय़ों से टकराते हैं तो उनके बड़े-बड़े दावें खोखले नज़र आते हुए केवल किताबों के पन्नों में ही छा जातें हैं। कुपोषण का सबसे चरम रूप भुखमरी विटामिन, पोषक तत्वों और ऊर्जा अंतर्ग्रहण की गंभीर कमी का ही प्रतिरूप है।

हम ग़रीब है साहब... इस वायरस से तो बाद में मरेंगे पहले भुखमरी से मर जाएँगे भीख मैं पकवान न सही मेहनत की नमक तेल, भात तो खाने दो...!!

इंसान के लिए भोजन एक अनिवार्य आवश्यकता है जिसके बिना वो नहीं जी सकता। पर सोचियें क्या हो अगर भरपेट भोजन ही न मिले। दुनिया भर के करोड़ों लोगों के लिए यह भी एक कड़वी पर यहीं सच्चाई भी तो है। हाल ही में ग्लोबल नेटवर्क अगेंस्ट फूड क्राइसेस द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार 2020 में खाद्य संकट का सामना कर रहे लोगों की संख्या दोगुनी हो सकती है जिसके लिए कोरोना वायरस को एक बड़ी वजह माना जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार 2019 में करीब 13.5 करोड़ लोग भुखमरी का सामना कर रहे थे जो कि 2020 में बढ़कर 26.5 करोड़ हो जाने की आशंका है। जिसके लिए कोरोनावायरस और उसके कारण उपजे आर्थिक संकट को जिम्मेदार माना जा रहा है। इसके अनुसार साल के अंत तक केवल कोरोनावायरस के चलते करीब 13 करोड़ लोग भूखे सोने को मजबूर हो जाएंगे। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन, विश्व खाद्य कार्यक्रम सहित दुनिया भर की 14 अन्य एजेंसियों द्वारा मिलकर तैयार की गयी है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की इस साल की सूचीे के अनुसार हैती को भुखमरी के शिकार देशों में सबसे ऊपर रखा गया है जहां पर 55 प्रतिशत से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहकर ,140 रूपए से भी कम आमदनी में गुजारा करने को विवश हैं। भुखमरी के शिकार देशों में भारत का स्थान 94वें नंबर पर है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट बतातीं है कि दुनिया में 85 करोड़ 30 लाख लोग भुखमरी का शिकार हैं, अकेले भारत में भूखे लोगों की तादाद लगभग 20 करोड़ से ज्यादा भूखी रहतीं हैं ग़रीबी की शक्ल में ऊंची-ऊंची इमारतों, शामियानों की बगल में, फैंकने से बेहतर अन्न तुम किसी को दे भी तो सकते हों।

माना की खाने को कुडे मैं फैंकना,थालीं में झुठन को छोड़ना,अन्न को खाद्यान्न भंडारण में बरबाद करना, हमारी रोज़मर्रा की आदतों में शामिल हो,पर बेहतर तों यह होता कि यह अन्न हम बचा पातें, तो शायद हमारे द्वारा फेंका गया यह झुठन झुग्गी-झोपड़ियों के लिए दावत होता।

महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि हर वर्ष हमारे देश में खाद्यान्न का रिकार्ड उत्पादन होने के बावजूद क्यों देश की लगभग एक चौथाई आबादी को भुखमरी से गुजरना पड़ता है? यहां मामला यह है कि हमारे यहां हर वर्ष अनाज का रिकार्ड उत्पादन तो होता है, पर उस अनाज का एक बड़ा हिस्सा लोगों तक पहुंचने की बजाय कुछ सरकारी गोदामों में तो, कुछ इधर-उधर अव्यवस्थित ढंग से रखे-रखे सड़ जाता है। संयुक्त राष्ट्र के एक आंकड़े के मुताबिक देश का लगभग 20 फीसद अनाज भण्डारण क्षमता के अभाव में बेकार हो जाता है। जबकि संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन यानी एफएओ की एक रिपोर्ट बताती है कि रोजाना भारतीय 244 करोड़ रुपए यानी पूरे साल में करीब 89060 करोड़ रुपये का भोजन बर्बाद कर देते हैं। इतनी राशि से 20 करोड़ से कहीं ज्यादा पेट भरे जा सकते हैं, लेकिन इसके लिए न सामाजिक चेतना जगाई जा रही है और न ही कोई सरकारी कार्यक्रम या योजना है। इसके अतिरिक्त जो अनाज गोदामों में सुरक्षित रखा जाता है, उसका भी एक बड़ा हिस्सा समुचित वितरण प्रणाली के अभाव में जरूरतमंद लोगों तक पहुंचने की बजाय बेकार पड़ा रह जाता है।आज की तथाकथित सभ्य दुनिया के लिए यह बहुत ही दुखद और आश्चर्यजनक है कि जब धरती के कुछ मुट्ठी भर लोग आसमान से बातें कर रहे होते हैं, और जब इस ऊंचाई में उनके पैर ज़मीन पर नहीं होते हैं तब,तब उस समय इस भूमंडल पर ऐसे करोड़ों लोग कीड़े मकोड़ों की भांति अपना जीवन यापन करने के लिए विवश होते हैं, जिन्हें हमारे द्वारा ही भुखमरी की अवस्था में रखकर गिना गया है।

एक ग़रीब आदमी बोला मेरी तो मजबूरी है आप से खाना लेकर अपना पेट भरने की लेकिन आपकी क्या मजबूरी है खाना देते हुए मेरे साथ फोटो लेने की  ग़रीबों की सहायता करते वक़्त उनका फोटो मत खींचो। 

वास्तव में देखा जाएं तो लोग ग़रीबी को कागज़ पर उतारकर रातों रात अमीर तो बन जातें हैं, और इससे भी आगे वह लोग होते हैं जो ग़रीब या ग़रीबी के दुख दर्द को न खरीदकर, उस दुख दर्द की तस्वीर ज़रूर खरीद कर अपने ड्राइंग रूम में सज़ाकर प्रशंसा प्राप्त कर लेते हैं। यहां पर एक तरह से ग़रीब की मुक हंसी उड़ाई जाती है, एक रोटी हाथ में पकड़ा कर उसकी सौ सौ तस्वीरें खींचवाई जाती हैं। वह ग़रीब नहीं जानता है मज़हब, वहां पर तो उसके पेट की आग होती है,जिस कारण उसे उसमें भी भगवान ही नज़र आता है, वहां पर उसे भुख से बढ़कर कोई सम्प्रदाय नज़र ही नहीं आता है और नहीं रोटी से बढ़कर कोई ईश्वर ही नज़र आता है।

वह राम की खिचड़ी भी खा लेता है, वह रहीम की खिर भी खा लेता है, उस भुखें को सम्प्रदाय समझ़ में ही नहीं आता है।

भुख, भुखमरी, और गरीबी मनुष्य की मानसिक वेदना की वह चरम सीमा है, जब उसे मात्र और केवल मात्र एक समय का भरपेट भोजन ही नज़र आता है, और इस भोजन की आपा-धापी में वह भूखा, पेटभर के खाना तो खा लेता है, परन्तु उस स्थिति में उसकी ग़रीबी के, खींचे गए फोटो और कातर असहाय रोटी को देखतीं एकटक भूखी नजर फोटो गैलरी में अवार्ड पा जाती है,पर ग़रीब की ग़रीबी ज्यूं की त्यूं ही रह जाती हैं। ऐसा लगता है मानो ईश्वर ही इनसे सबकुछ छीन लेता है , शाय़द ईश्वर इन सब से ज्यादा ही ग़रीब हैं। शायद दो वक्त की रोटी इनके लिए एक सपना हों। नन्हीं आंखें इमारतों में और इमारतों के बगल में समारोह में लगाएं गये शामियाने में झुठे छोड़े गए भोजन की प्लेटों में इस क़दर झांकती है मानों की उस समय भुख और भुखमरी का आलम यह होता है कि लापरवाही में हमारे द्वारा छोड़ी गई झुठी झुठन, अथवा जहां भोजन के अंत में थोड़ा सा जानबूझकर छोड़ा गया खाना हम हमारी शान तो समझते हैं, वहीं हमारी शान से छोड़ी गई झुठी भोजन की थालीं,और उसमें बचा खाना दिन में एक समय के लिए झुग्गी-झोपड़ियों के लिए दावत हो जाती हैं।

वहां पर हालत यह होती है कि झुग्गी-बस्ती के वह बच्चे आज उन खिलोनों के लिए भी नहीं रोएंगे, क्योंकी झुठी प्लेटों का ही सहीं पर आज उन्हें भरपेट खाना तो मिला...!!


Dr.Nitu  Soni

I am a Ph.D. in Sanskrit and passionate about writing. I have more than 11 years of experience in literature research and writing. Motivational writing, speaking, finding new stories are my main interest. I am also good at teaching and at social outreach.

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