ओ, ओह बाबा...!
तेरे ही बाग बान में मे खिली हूं,
पली हूं बड़ी हुई हुं मैं,
चिड़िया बन कर खुले आसमान में
पंख फैलाकर आज तक उड़ रहीं हुं मैं,
कर न शर्मिंदा मेरी इस ऊंची-ऊंची उडान पर बाबा...
हे...! बाबा , हे...! बाबा तु,
आज मुझे दहेज देकर तो विदा मत कर...!!
"सेल सेल सेल.... दूल्हे की सेल। आइएं, आइए, लें जाएं सेल से, जी हां साहब, सेल में बिक्री से दूल्हा।"
हां, आज दूल्हा बिक रहा है, आ जाएं सेल लगीं है, बाजार में, मंडी में, समाज के चौराहे पर। दूल्हे के शेयर के अनुसार दुल्हन की कोई किमत नहीं है। इस सेल में दूल्हे के साथ उसका खर्चा उठाने की, अपने धन से उसकी जीवन नैया की गाड़ी चलाने की जिम्मेदारी भी दुल्हन की ही है यह नोटीस पढ़ कर आइएं, एकदम नि:शुल्क, इसमें किसी भी तरह की कोई शंका नहीं है, आप तो किमत निर्धारित किजिएं हम लेने को तैयार हैं, सेल से ले लिजीएं दूल्हा। आइए आइए...! हमें किमत ना जमी तो आप आगे जाऐं, नये घोड़े नये मैदान, इसलिए तो किमत भी हमारे अनुसार ही निर्धारित होगी। अलग अलग दूल्हें की किस्मत की नैया, अलग अलग भावों से, किमत आप लगाइएं तय हम करेंगे। चाहें दुल्हन कोई भी क्यों न हो, कितनी सुंदर, कितनी पढ़ी लिखीं, चाहें दूल्हे पर भारी, फिर भी किस्मत तो लगेगी दूल्हे की न्यारी, और सिर्फ हमारी।
हर निलामी का भाव अलग अलग। जिसने मुंह मांगे दाम पर निलामी छुड़वाई उसका दूल्हा। कोई शक नहीं, एक बार तो इस दूल्हे के मार्केट में जरुर आएं। हां जी साहब एक नहीं, दो नहीं, चार नहीं, यहां पर दूल्हा बिकता है लाखों में। एक बार तो किस्मत आजमाये और छुड़ाए अपना दूल्हा। चाहें उसकी दूगुनी किमत की लड़की क्यो न हो यह तो समस्या फिर आपकी। परन्तु मर्जी तो हमारी ही चलेगी क्योंकि दूल्हा तो हमारा ही है। आपको मंडी का दूल्हा नहीं जमा तो आगे चल दिजीएं, मुंह मांगी कीमत पर दूल्हा छुड़ाने के लिए ग्राहक बैठे हैं! हां जी आप आएं दूल्हा मंडी में स्वागत है, आपका, परन्तु सावधान, दूल्हा मंडी में आने से पहले एक बार दूल्हा मंडी किमत चार्ट जरूर देख लिजीएं, तभी इस द्वार से आपका स्वागत किया जाएगा ।
बेरोजगार- 2 लाख
चपरासी- 6 से 8
सिपाही- 10 से 12
सेना- 7 से 9
प्राइवेट इंजिनियर- 5 से 10
सरकारी इंजिनियर- 10 से 20
कर्ल्क- 12 से 15
ऑफिसर- 20 से 30
हर लेवल की अलग अलग किमत है, पसंद आएं तो सही नहीं तो आगे निकलिएं, कमाते खाते दूल्हे का मार्केट, आप नही तो और सही , जल्दी से जगह दिजीएं, बोली लगने को और लगाने वाले अन्य लोग तैयार बैठे हैं। मंडी के सर्वे सर्वा है,स्वयं दूल्हा, दूल्हे के ही अपने पिता, भाई, और रिश्तेदार। मंडी का उतार चढ़ाव, समाज का भाव इन्हीं से निर्धारित होगा...!!
यहां पर दूल्हे की मंडी का दावानल रूप ही दहेज हैं। यहां पर न तो पुरुष प्रधानता की बात आतीं हैं और नहीं स्त्री प्रधानता का रूप ही नज़र आता है, यहां पर दहेज़ का एक विकराल विकृत रूप नज़र आता है जो समाज की एक बुरी सच्चाई हैं। हमारे समाज की विडम्बना देखिंए, बालिका शिक्षा के प्रभाव से बालिकाओं को पढ़ा कर योग्य तो बना दिया जाता है, ताकी लड़की का भविष्य अच्छा बने, शिक्षा के माध्यम से भविष्य तो अच्छा बन जाता है, परन्तु इस मंडी में लड़की का मोल-भाव, शिक्षा से, सुंदरता और योग्यताओं, से नहीं, अपितु पैसों के तराजू पर निर्धारित किया जाता है, यहां पर कहीं न कहीं दस में से तीन से चार लड़कियां पूर्ण योग्य होने पर भी सामान्य रूप से गृहस्थ जीवन में कभी न कभी दहेज की शिकार होती ही है।
मनुस्मृति मे भी ऐसा उल्लेख आता है कि कन्या के विवाह के समय दाय भाग के रूप में धन-सम्पत्ति, गौ, आदि कन्या को देकर वर को समर्पित किया जाता था, परन्तु यह भाग कितना होना चाहिए, इस बारे में मनु ने उल्लेख नहीं किया। समय बीतता चला गया स्वेच्छा से कन्या को दिया जाने वाला धन धीरे-धीरे वर पक्ष का अधिकार बनने लगा और वर पक्ष के लोग तो वर्तमान समय में इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार ही मान बैठे हैं। अखबारों में निकालें गये विज्ञापनों के अनुसार लड़के या लडकी की योग्यता इस प्रकार हैं, उनकी मासिक आय इतनी है और उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि बहुत सम्माननीय है । ये सब बातें पढ़कर कन्यापक्ष का कोई व्यक्ति यदि वरपक्ष के यहां जाता है तो असली चेहरा सामने आता है । वरपक्ष के लोग घुमा-फिराकर ऐसी कहानी शुरू करते हैं जिसका आशय अधिकांशतः स्थानों पर निश्चित रूप से दहेज होता है। अखबारों में टीवी चैनलों पर आने वाले दहेज उत्पीड़न के मामले जो इस बात का घोतक है कि, आज शादी का बंधन पवित्रता का बंधन न रहकर मात्र धन की सौदेबाजी का बंधन रह जाता है।
विदाई से पहले ही आज मेरे घर के गुल्लक टूटने लग गये हैं,
शायद दहेज के आधार पर ही तो आज मेरी बेटी की शादी हैं।
कई जगह पर तो हम दहेज लेकर और देकर अपनी उच्च शानो-शौकत का दिखावा करते हैं, और इस दिखावें में दूसरों को नीचा दिखाने के प्रयास में भी कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। समाज और हमारे आसपास मनुष्य के लालच और उसकी आर्थिक आकांक्षाओं से ही जुड़ी हुई एक यह भी सच्चाई नज़र आतीं हैं कि जिसे जितना ज्यादा दहेज मिलता है उसे समाज में उतने ही सम्माननीय नजरों से देखा जाता है। वर की योग्यता एवं पद के अनुसार दहेज की मांग की जाती है । कभी-कभी तो वर पक्ष के लोग दहेज की मांग विवाह मंडप में ही रखना शुरू कर देते हैं, ताकि कन्या पक्ष के लोग मान-मर्यादा की खातिर उनकी हर मांग पूरी करने पर विवश हो जाएं ।
ईश्वर की रहमत, नेमत, बरकत, इज्जत,
एक मीठी मुस्कान, यह सब कुछ तो है बेटियां,
और मैं तुम्हें दहेज में क्या क्या दूं ?
दहेज की माँग और कन्यापक्ष के प्रति किये गये व्यवहार से तो ऐसा मालूम होता है कि यहां पर विवाह न होकर लड़के का ही सौदा हो रहा है, और इस सौदे में लड़की अनिवार्य रूप से स्वयं की जीवीकोपार्जन के सामानों के साथ दूल्हे की मांगों की गाड़ी इस तरह से खिंचेगी, जिसमें सवारीरत दूल्हा कमाउं चाहें अनकमाउं हो परन्तु इस गाड़ी पर वह वधू और वधूपक्ष के लोगों पर हावी होते हुए मात्र और केवल मात्र सवारी ही करेगा। यह सत्य है, वधूपक्ष द्वारा वधू द्वारा खिंचीं गई इस गाड़ी पर दहेज रूपी वजन न रखने पर सामान्यतः वधू कि उलाहना अथवा मृत्यु तक की मौन घोषणा हो जाएगी।
एक सामान्य नौकरी लगने पर भी लड़के के घर पर खरिदारों की इस कदर लाइन लग जाती है कि उस समय न तो लड़के का चरित्र और नहीं उसके संस्कार ही देखें जातें हैं। 1000 लड़कियों में से 766 लड़कियाँ ही समाज में जीवित रहती हैं तो इसका एक कारण सामाजिक कोढ़ दहेज़ है। भारत में 8.9 प्रतिशत लड़कियाँ 13 वर्ष की उम्र से पहले ब्याह दी जाती हैं जबकि अन्य 23.5 प्रतिशत लड़कियों की शादी 15 वर्ष की आयु तक हो जाती है। नेशनल क्राइम रिकॉर्डस ब्यूरो ऑफ इंडिया के अनुसार सन् 2000 में 8,391महिलाओं की मृत्यु दहेज के कारण हुई। जो सबसे ज्यादा हैं।
वहीं 2015 के अनुसार हर वर्ष भारत में एक करोड़ शादियां भारत में होती है जिसमें 10,000 से ज्यादा दहेज के विरुद्ध केस दर्ज हुएं हैं, और वर्ष 2015 मे ही 7,634 महिलाओं की मृत्यु भी दहेज उत्पीड़न के कारण हुई है। जाहिर है लड़की जितनी पढ़ेगी बढ़ेगी उतना ही उपर्युक्त वर तलाशना होगा और उसके रेट के मुताबिक दहेज जुटा पाना सबके बूते की बात नहीं है इसलिए कम उम्र की कम पढ़ी-लिखी लड़की ब्याह कर कन्यादान का पुण्य प्राप्त करना अधिकांश लोग इसे ही अच्छा मान लेते हैं। दहेज लेना अथवा देना कोई एक पक्ष की बात नहीं है, कहीं कहीं वर और वधु पक्ष दोनों ही परस्पर मिलकर सामाजिक उच्च ओहदे के लिए इस दहेज़ प्रथा को संतुलित ढंग से निभाते हैं, और कहीं जगह तो वधुपक्ष जानबूझकर विवाह विच्छेद कारणों में दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज करवाते हैं, मतलब हम में से अधिकांश लोग इस का ग़लत फायदा तक उठाने लगी जातें हैं,जो बिल्कुल अस्वीकार्य और ग़लत हैं।
औरत मोहताज नहीं किसी हुक्म की...
वह तो स्वयं बागबान हैं, इस कायनात की।
जीनें दो उसे जो आई है,
खुद सृष्टि का निर्माण लिए...
इस सृष्टि की रचनाकार,
स्वयं स्त्री जो पुकार रहीं हैं,
जीवन में हर क्षण हर पल अपने मन की एक ही,
आवाज़ की तू नारी है, तु शक्ति है...!