माँ, मदर, उम, मादर, ताय, अम्मी, आई, आमा, मुटर, मामा .... किसी भी नाम से पुकारिए |सभी का एक ही मतलब है माँ| चोट लगने पर, दुख में जो शब्द आप के मुह से निकलता है वह है माँ।
हर कोई अपने माँ के हाथ के बने खाने का स्वाद ही हर जगह खोजता है| माँ की साड़ी, माँ के गहने सब आप कॉपी करते है| एसे में कोई कहे साल का एक ही दिन माँ के है तो गलत होगा। माँ शब्द का ख्याल आते ही एक महिला की मूरत सामने आती है जो हमें सदियों से बताई जा रही है बलिदान की, अपने से पहले अपने बच्चे,अपने परिवार के लिए जीती है।
ऋग्वेद में तो उषा काल को भी माँ कहा गया है। यानि जो सबसे पहले दिखे ।
प्रकृति में, आपकी सोच में, वृक्षों में पौधे में जो भी आपका हित करता है उसे सदियों से माँ के समान कहा गया। यानी जो आपका हित चाहे वह माँ है।
यस्य माता गृहे नास्ति, तस्य, माता हरितिका।
हरितिका अर्थात हरड़ मनुष्यों की माता के समान हित करने वाली होती है
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गद्पि गरीयसी।
यानि माँ और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। वेद व्यास कहते हैं, माता के समान कोई छाया नहीं, माता के समान कोई सहारा नहीं है, माता के समान कोई रक्षक नहीं है और माता के समान कोई प्रिय नहीं है।
मातृदेवों भव।
ऐसा तैतरीय उपनिषद् में लिखा गया है।
मैक्सिक गोर्की का उपन्यास ‘माँ’ हो या महाश्वेता देवी के उपन्यास ‘1084 की माँ’ में जिस प्रकार माँ को व्यक्त किया गया है वह एक अलग रूप दिखता है। क्रांतिकारी जब अपनी जान की बाजी लगाकर देश समाज के लिए काम करता है, उसकी माँ क्या सोचती हैं यह उपन्यास बताता है |
बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं है ,एक सैनिक की माँ को याद करिए कैसे उसे पता है कि उसक बेटा एक ऐसी जगह है जहाँ कुछ भी अनहोनी घटना हो सकती है | फिर भी वह एक आह भी नहीं निकालती और खुशी - खुशी अपने बेटे को रणभूमि में भेज देती है।
इन सब के साथ हमें यह भी याद रखना चाहिये माँ होने का अर्थ केवल यह नहीं कि आप त्याग की मूर्ति ही बनी रहे। अपने बारे में भी सोचें तभी आप अपने बच्चों के बारे में सोच पाएंगी। हर माँ को वो दिन याद होंगे जब उसे कहा जाता था स्वस्थ रहेंगी तभी तो स्वस्थ बच्चे को जन्म दे पाओगी। इसी प्रकार जीवन में भी आगे भी हर माँ का शरीर और मन स्वस्थ रहेगा तभी तो वह एक स्वस्थ बच्चे को पाल सकेगी और उसे कामयाब बना पाएगी। स्वस्थ समाज दे पाएंगे।
"आंचल में दूध आंखो में पानी" ही माँ की परिभाषा नहीं होनी चाहिए। माँ का एक रूप लक्ष्मी, दुर्गा और चंडी भी है। उसे भी याद रखना चाहिए। माँ को भी और समाज को भी |
हर माँ के पास कहानी है
अपने माँ बनने की
तुम एक बार उससे पूछ कर तो देखो
हर बच्चे के साथ एक गाथा है
उसके पास
हर माँ अपने आप में कथा है
अपनी माँ को जानो।
पुराणो में ,वेदों में , उपन्यासों में
मत ढूंढो माँ को
अपनी माँ को एक बार देखो तो
तुम्हारा अस्तित्व उसकी वजह से है
वह तुम्हारे अस्तित्व से परे है
यशोदा हो या कुंती
सब में वह बराबर प्रेम परोसती है।