ज़िन्दगी एक रंगमंच है जहाँ हर एक व्यक्ति अपना किरदार बखुबी निभाता है। इस किरदार को निभाते वक्त उसे यह भी नहीं पता होता कि उसका निभाया गया किरदार कब ख़त्म हो गया है। इस किरदार को निभाने के दौरान वह इसमें इतना खो जाता है कि इसे ही वह अपनी सच्चाई स्वीकारने लग जाता है। ज़िन्दग़ी हमें मौका देती है कुछ सुनने का, कुछ कहने का। ज़िन्दगी जब बदल जाती है, जब हम इसकी सच्चाई से लड़ते हैं। इसलिए तो कहां है कि कहों , हां कुछ तो कहों...
कहों, हां आप भी कहों, हम भी कहें...
कहों,
क्योंकि अनवरत है जीवन।
कहों,
क्योंकि खामोशियां बेवजह नहीं होती हैं।
कहों,
तभी कहना आएगा न।
कहों,
तभी तो सुनेगें सब लोग।
कहों,
क्योंकि लोग क्या कहेंगे यह कहकर नहीं है जीना,
कहों,
क्योंकि रोकनी है अफ़वाहें।
कहों,
ताकि लोग घर से बाहर निकल कर संभल सकें।
कहों,
ताकि लोग हमें सुनना न भूल जाएं।
कहों,
क्योंकि अंदाजे से नहीं बयां होगी हस्ती,
कहों,
क्योंकि जीवन छोटा है।
कहों,
किसी की किस्मत बुलंद किसी की ख़राब रहतीं है।
कहों,
ताकि जीवन की सच्चाई सामने आ सकें।
कहों,
आज ही कहों, क्योंकि जो आज है वह कल नहीं। ।
ज़िन्दग़ी कभी हंसाती है तो कभी हमें रुलाती भी तो है, इसलिए ही तो किसी के लिए ज़िन्दग़ी हसीन है तो किसी के लिए दर्द और दुखों से भरी हुई भी है । ज़िन्दग़ी बड़ी अनमोल है, इसलिए तो इसे हमारे ही द्वारा कुछ कुछ शब्दों में भी तो व्यक्त किया जा सकता है न...!!