कुछ कुछ, कुछ लोग कहते हैं,
बड़ा कुछ, और कुछ कहने को है,
बहुत कुछ, अब आगे तय करने को है..
जैसे कुछ बाते शब्दों के साथ नही कही जाती,
जैसे कुछ मंज़िले कदमों के साथ खप नहीं जाती,
जैसे कुछ इंतज़ार समय के साथ भूले नही जाते,
जैसे कुछ सपने खुली आँखी में भी मिटाये नही जाते,
जैसे कुछ दर्द, सबको बताये नही जाते...
पर बहुत कुछ, कुछ लोग कहते हैं कि..
अब कहने के लिए कुछ भी बाकी नहीं,
तय करने के लिए वो सफर अब बचा नहीं,
देखे, सोचे, बांटे कुछ सपनो का अब आकार नही,
तो मैं कहता हूँ कि..
आने के सफ़र की, जाने के इतिहास,
मुझ से ऐसी वैसी टूटती बात न करो,
बस...मुझे अगला कदम रखने के लिए,
कुछ खुले होंसलों की ज़मीन दे दो...
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