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मैं और वो | शिक्षा तंत्र के भ्रष्टाचार पर एक कटाक्ष कविता  | FailWise

मैं और वो | शिक्षा तंत्र के भ्रष्टाचार पर एक कटाक्ष कविता | FailWise

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शब्द       –    अर्थ

मैं            –    एस्पिरेंट या विद्यार्थी

वो          –    भ्रष्ट विद्यार्थी

साहब    –    आयोग जो प्रतियोगी परीक्षा कराती है, एवं उसमें बैठे उच्चाधिकारी

लहजा   –     सिलेबस

यह कविता मैने तब लिखी थी जब उत्तराखंड में लगातार प्रतियोगी परीक्षा में धांधली हो रही थी । एस्पिरेंट्स हताश निराश थे अब चूंकि मैं भी एक विद्यार्थी हूं तो उनका दर्द समझ सकता था ।। तो इस पर मैंने 4 पंक्तियां लिखने की कोशिश की है । इस कविता की पंक्तियां कुछ इस प्रकार हैं ......

एक मैं और एक वो

दोनों चले करने तैयारी जीत की,

मैंने पूछा साहब से कि

कैसे होगी मिलन हमारी और प्रीत की।


साहब बोले–

अरे बाजार में नई किताबें आई हैं

जरा उन्हें पढ़ो तो,

तभी वो ने गड्ढी निकाल कर कहा

सर मुझसे याद नहीं होता

जरा इन्हें गिनो तो।


अब मैं करने लगा तैयारी

नए किताबों के खरीद की,

और वो,वो देखने लगा ख्वाब

पहली तनख्वाह के रसीद की।


अब फर्क ये हुआ 

मेरी और वो के सोच के योग में,

उसकी गई आकाश

और मेरी पाताल लोक में।


वो सोचे कि यह सब पाना 

कितना सरल,कितना आसान है,

उसे क्या पता मेहनत का

जो यहां पहले से धनवान है।


वहीं मैं, मैं देखूं मोटिवेशन वीडियो

तो लगे यह सब शेर की दहाड़ है,

पर आज भी वही सिलेबस लगे

जैसे नंदा का पहाड़ है।


आज वो का जीवन

सफल,प्रसिद्ध और भव्य है,

और मेरा अभी भी 

अपनी मंजिल पाना एक लक्ष्य है।


मैं कल्पना करता रहा 

उस गड्ढी के वजन की,

जिस पर छुपी थी हामी और मुस्कान

वो के सजन की।


उधर साहब बदलते रहे लहजा अपना,

इधर मैं निःशब्द रगड़ता रहा अपना सपना

सोचा इक दिन जब बादल छाएंगे,

दो चार सुकून की बूंदें हम पर भी तो आयेंगे।


कमबख्त फिर से एक और वो आया

इस बार दो गड्ढी निकाल के बोला

सर मुझसे भी याद नहीं होगा,

आप बताओ क्या आपका इसमें होगा।

(लेखक:: प्रदीप सिंह ‘ग्वल्या’)



Pradeep Singh ' ग्वल्या '

I am pradeep from pauri garhwal uttarakhand,I am double MA and also have a B.Ed degree.

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