दुनिया में पिता जैसा कोई और नहीं।
माना कि मां के दूध का कर्ज चुकाया जा सकता नहीं।
पर पिता का फर्ज निभाना भी इतना आसान नहीं।
उस का हाथ जो हो सर पर ,फीक्र फिर कोई होती नहीं।
तपती धूप, बरसती बरसात में भी वह कहीं रुकता नहीं।
घर की जरूरतों को पूरा करते करते वह कभी थकता नहीं।
दुनिया में पिता जैसा कोई और नहीं।
अपने सपने चाहे टूटे, बच्चों के ख्वाब बिखरने देता नहीं।
थक कर चूर हो जाएं पर माथे पर शिकन आने देता नहीं।
चेहरे पर मुस्कान हमेशा ,पैरों के छाले कभी दिखाता नहीं।
जेब में उसके पैसे ना हो, पर मुंह से कभी जताता नहीं।
अपनी दवा बेशक भूल जाए , खिलौने लेना भूलता नहीं।
दुनिया में पिता जैसा कोई और नहीं
मां की डांट प्यार है, पिता की फटकार दुलार से कम नहीं।
भविष्य की राह बनाती उसकी सीख बेकार वो जाती नहीं।
बच्चों की खुशी में ही सुख ढूंढता अपना दुख जताता नहीं।
मौन रहकर व्यक्त करता है भावों को, शब्दों से खेलता नहीं।
पैदल चलकर किराया बचाता है चॉकलेट लेना छूटता नहीं।
दुनिया में पिता जैसा कोई और नहीं।
बच्चों के आज को संवारता है अपना भविष्य सताता नहीं।
बड़े होने पर बच्चों के पास पिता के लिए समय होता नहीं।
फिर भी बूढ़ा पिता हर रोज बेटों की राह देखते थकता नहीं।
हर आने जाने वाले से नजरें चुराता है, आंख मिलाता नहीं।
इस डर से, कि कोई पूछ ना ले क्या? बेटे साथ रहते नहीं।
दुनिया में पिता जैसा कोई और नहीं,
उसका रुतबा भी मां से कम नहीं।
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