"कोई भी व्यक्ति जिसने सीखना छोड़ दिया चाहे उसकी उम्र बीस साल हो या अस्सी साल, वो बूढ़ा है। कोई भी जिसने ज्ञान प्राप्त करना जारी रखा हुआ है वो युवा है।" -हेनरी फोर्ड
अक्सर हम उन प्रेरणादाई व्यक्तित्व को पढ़ते हैं, उनके विचारों को सुनते हैं जिन्होंने विकट परिस्थितियों में साहस नहीं छोड़ा। संघर्षों और चुनौतियों का डटकर सामना किया। अपने विचारों और कार्यों से एक मिसाल बन लोगों के लिए प्रेरणा बने। पर हम यह भूल जाते हैं कि बहुत से ऐसे व्यक्तित्व हमारे आसपास होते हैं जो भले ही विश्व या राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध ना हों पर उनका साहस, उनका जुनून, कुछ कर गुज़रने का जज़्बा हमारे अंदर एक जोश पैदा कर देता है। हमें ऊर्जावान बना देता है। एक सकारात्मकता हमारे अंदर उत्पन्न करता है। ऐसा ही एक व्यक्तित्व है जिसका मैं यहां जिक्र करना चाहती हूं और मैं उनसे बहुत प्रभावित भी हूॅ॓ वो है डॉ. प्रमिला जैन। 58वर्ष की आयु में भी उतनी ही ऊर्जावान, सक्रिय तथा कुछ नया सीखने की ललक आपमें कायम है। आप उन लोगों के लिए एक मिसाल हैं, विशेषकर उन महिलाओं के लिए जो यह सोचती हैं कि अब हमारा विवाह हो गया, बच्चे हो गए, अब इतने सालों बाद हम कुछ नहीं कर सकते,अपने सपने कभी साकार नहीं कर सकते,अब क्या करेंगे सपने पूरे करके? परन्तु प्रमिला जी ने यह सिद्ध कर दिया है कि सीखने की या अपने सपनों को साकार करने की कोई उम्र नहीं होती। व्यक्ति जीवन में किसी भी उम्र में किसी भी परिस्थिति में जो कुछ उसके पास है वहीं से शुरुआत कर सकता है, बस उसका एक लक्ष्य होना चाहिए,एक सपना होना चाहिए, जुनून और लगन होनी चाहिए। स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है- "जब तक जीना है तब तक सीखना है।" व्यक्ति के सपने चाहे कितने भी छोटे हो या बड़े उसे पूरा करने की लगन उसमें होनी ही चाहिए।
बचपन से ही प्रमिला जी का सपना था कि वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बने। उस समय लड़कियों की शिक्षा को इतना गंभीरता से नहीं लिया जाता था परंतु उनमें बचपन से ही अपनी शिक्षा और अपने सपने के प्रति एक जुनून था। 18 वर्ष की आयु में जब वह बी.ए.की शिक्षा प्राप्त कर रही थी उसी दौरान उनका विवाह हो गया। एक नये परिवार में बहु,पत्नी के रूप में अब उनकी ज़िम्मेदारियां, उनके दायित्व बढ़ गए, फिर भी अपने सपने के प्रति उनका जोश कम नहीं हुआ। परिवार के प्रति अपनी प्राथमिकता को वह बखूबी समझती थी। उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी। शादी के बाद दो बच्चों की मां बनने पर भी उन्होंने अपने पढ़ने की व ज़िन्दगी में आगे बढ़ने की उम्मीद नहीं छोड़ी। अब वह केवल बहु और पत्नी ही नहीं बल्कि एक मां भी थी अपने दायित्वों एवं प्राथमिकताओं को वह भली-भांति जानती थी। दोनों बच्चों का लालन-पालन करने के साथ ही पारिवारिक ज़िम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए एम.ए.की पढ़ाई प्राइवेट विद्यार्थी के रूप में करने का निश्चय किया।आखिर उनके पढ़ाई के ज़ुनून को देखते हुए उन्हें प्राइवेट पढ़ाई जारी रखने की अनुमति मिल गई और उन्होंने सुखाड़िया विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में एम.ए. किया तथा विश्वविद्यालय की मेरिट लिस्ट में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। पारिवारिक दायित्वों को बखूबी निभाते हुए यह उपलब्धि इतनी आसान नहीं थी। पर उन्होंने यह कर दिखाया।आगे उनका एम.फिल. व पीएच.डी. करने का इरादा था परंतु पारिवारिक परिस्थितियां उनके अनुकूल नहीं रही तथा आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख सकी।
पन्द्रह वर्षों तक वह अपने बच्चों और परिवार के प्रति पूरी तरह समर्पित रहीं। अपने सपनों को उन्होंने कभी अपने दायित्वों और ज़िम्मेदारियों के बीच नहीं आने दिया। पर मन में विश्वास था कि एक न एक दिन वो अपना सपना अवश्य साकार करेगी।
पन्द्रह वर्षों के बाद उन्हें यह मौका मिला। जब बच्चे बड़े हो गए, जिम्मेदारियां थोड़ी कम हो गई तब बिना एक पल गंवाए उन्होंने फिर वहीं से शुरुआत की जहां से उन्होंने छोड़ा था। 38 वर्ष की आयु में राजस्थान महिला गेलड़ा टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज से बी.एड. की ट्रेनिंग की (जबकि यह उम्र सरकारी नौकरी पाने के लिए अमान्य /over age हो चुकी थी)।जैसा कि हम कहते हैं कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती यानी कि जीवन के किसी भी मोड़ पर कुछ भी सीखना या कर गुज़रना नामुमकिन नहीं होता है।जीवन की डगर में कब किस कौशल की कहां आवश्यकता पड़े कोई नहीं जानता। प्रमिला जी को 40 वर्ष की उम्र तक तो साइकिल चलाना भी नहीं आता था किंतु उन्होंने अपने अंदर सीखने की इच्छा को मरने नहीं दिया और उम्र के इस पड़ाव में पहुंच कर भी स्कूटर व कार चलाना सीख लिया।बीएड करते ही दिगंबर जैन उच्च माध्यमिक विद्यालय में छः वर्षों तक उच्च माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन का कार्य किया व शत प्रतिशत परीक्षा परिणाम दिया। अध्यापन के साथ-साथ समाज सेवा के कार्यों में भी उनका सक्रिय रुझान रहा। सन् 2001 से श्री महावीर युवा मंच संस्थान की महिला प्रकोष्ठ संस्था के साथ कार्य करते हुए सचिव पद का निर्वहन भी किया। इसके साथ ही वो रुकी नहीं उन्हें तो और आगे बढ़ना था। इसके बाद आपने जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय लाडनूं से एम. ए. एजुकेशन की डिग्री हासिल की तथा राजस्थान महिला गेलड़ा टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज से एम.एड.की डिग्री प्राप्त की।लगभग 8 वर्षों तक शिक्षक प्रशिक्षक कॉलेज में प्राध्यापक के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान की। परंतु उनका लक्ष्य था पीएचडी करना।अपने दोनों बच्चों की शादी के पश्चात 53 वर्ष की आयु में इन्होंने इनकी चिर प्रतिक्षित डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त कर ली। बचपन से जो सपना उनकी ऑ॑खों में पल रहा था वो उन्होंने अधेड़ उम्र में जाकर पूरा किया।इसके तुरंत बाद उन्होंने एक राष्ट्रीय जैन धार्मिक संस्थान "आचार्य श्री नानेश ध्यान केंद्र,उदयपुर" में प्रशासनिक अधिकारी के रूप में दो वर्षों तक अपनी सेवाएॅ॑ प्रदान की ही थी कि कुछ विषम पारिवारिक जिम्मेदारी के निर्वहन हेतु इनको इस नौकरी से भी त्यागपत्र देना पड़ा तथा घर परिवार में सामंजस्य बिठाते हुए अपनी ज़िम्मेदारियों का निष्ठा पूर्वक निर्वहन किया।
आपका उद्देश्य केवल अपने लिए ही जीना नहीं था बल्कि समाज एवं जरूरतमंद लोगों के लिए भी कुछ कर गुजरने की तमन्ना मन में थी अतः इनका रूझान धीरे धीरे सामाजिक कार्यों तथा सम्बंधित गतिविधियों की ओर भी बढ़ने लगा। अपनी सामाजिक गतिविधियों व सेवा कार्य को मूर्त रूप देने हेतु 2013 से जैन सोशल ग्रुप्स इन्टरनेशनल फेडरेशन की उदयपुर शाखा की सदस्य बन अपनी सेवाए निरंतर दे रही हैं। आपने जैन सोशल ग्रुप के बैनर तले "बंधुत्व की सेवा बंधुत्व से प्रेम"नामक विषय पर निबंध प्रतियोगिता में लगभग 100 प्रविष्टियों में प्रथम स्थान प्राप्त किया। आप ग्रुप की विभिन्न सांस्कृतिक एवं सामाजिक गतिविधियों में अग्रणी रहने के साथ ही पिछले कुछ वर्षों से मंच संचालन कार्य भी बखूबी कर रही हैं।
वर्तमान में संगिनी जैन सोशल ग्रुप मैन उदयपुर के सचिव पद पर कार्यरत है। आपकी कार्य कुशलता से प्रभावित होकर जेएसजी आईएफ, मेवाड़ रीज़न ने आपको वुमन एंपावरमेंट कमेटी के चेयरमैन पद पर सुशोभित किया साथ ही मेवाड़ रीजन की न्यूज़ लेटर कमेटी का भी आपको मेम्बर बनाया गया। कोरोनावायरस की इस महामारी में आप अपनी सामाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर जरुरतमंदों की मदद तथा अन्य सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय कार्य कर रहीं हैं। इन सबके अतिरिक्त इन्हें सिलाई, बुनाई, कढ़ाई, पाक कला बागवानी आदि में भी रूचि है। जिनके पास उम्मीद है वह कभी नहीं हार सकता।आपकी इस सफलता में आपके पति और बच्चों का भी बहुत सहयोग रहा। एक महिला जब चारदीवारी से निकल कर आगे बढ़ना चाहती है, कुछ करना चाहती है तो उनके परिवार का साथ उसके साहस को दुगुना कर देता है।
आपके लिए इतना ही कहूंगी कि आप इसी प्रकार लगन और ज़ुनून के साथ आगे बढ़ती रहें बुलन्दियों को छूती रहे, स्वस्थ,प्रसन्न एवं दीर्घायु रहें -
"अभी तो बस इस बाज के पंख निकले ही हैं,
पंखों की असली उड़ान तो अभी बाकी है।
छोड़ घर की दहलीज पांव अभी निकले ही है,
ज़मीं ही नहीं आसमां भी नापना अभी बाकी है।"
जो आप बन सकते थे वो बनने के लिए, कभी भी बहुत देर नहीं हुई होती है। -अज्ञात