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अदमनीय साहस एवं जीवट की कहानी | प्रमोदिनी राउल के जीवन और मौत के बीच के संघर्ष में जीवन की जीत हुई

अदमनीय साहस एवं जीवट की कहानी | प्रमोदिनी राउल के जीवन और मौत के बीच के संघर्ष में जीवन की जीत हुई

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"हौसलों की आंधियां इतनी तेज होनी चाहिए कि किस्मत का सिक्का पुरी तरह से पलट जाएं।"

यह कहानी है ओडिशा के जगतसिंहपुर की प्रमोदिनी राउल की। प्रमोदिनी राउल जिनके जीवन और मौत के बीच के संघर्ष में जीवन की जीत हुई, एकबार तो इस जीत के संघर्ष के जश्न में मौत भी प्रमोदिनी को सलाम देने के लिए मानों ठहर सी गई थीं।

सूकुन यह वहीं है न जो बचपन में हुआ करता था, हालत-ए जिंदगी सिखा देती है समझदारी वरना बचपन किसे पसंद नहीं हैं।

प्रमोदिनी राउल का जीवन सामान्य रूप से चल रहा था, साधारण मध्यम वर्गीय परिवार में पली बढ़ी प्रमोदिनी, पिताजी की बचपन में ही विद्युत में शार्ट सर्किट होने से मृत्यु हो गई थी, भाई नहीं था, परिवार कि भरण पोषण की सारी जिम्मेदारी रिश्तेदारो पर आश्रित, बालपन से ही प्रमोदिनी का गरीबी से संघर्ष शुरू हो चुका था। उन हालतों ने भी प्रमोदिनी को कुछ इस तरह से ढाल रखा था की वह अपना गुस्सा भी व्यक्त नहीं कर पातीं थी, ज्यादा गुस्सा उसकी आंखों में से आंसू बहकर निकलने लग जाता था। ऐसा कोई जिम्मेदार व्यक्ति भी प्रमोदिनी के परिवार में नहीं था, जो प्रारम्भिक जीवन की अवस्था में उसके परिवार को सम्बल प्रदान कर सके। संघर्ष पूर्ण जीवन व्यतीत करते हुए प्रमोदिनी ने अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए कालेज में प्रवेश लिया। प्रमोदिनी बचपन में ही समय से पूर्व समझदार हो गई थी।

हर कोई जीतना चाहता है लेकिन जो हारकर भी जीतना चाहते है वहीं एकदिन जरुर जीतते है।

14-15 साल की प्रमोदिनी किशोरी की तरह मासुमियत से अपने सपनों की दुनिया में जी रही थी की अचानक एक घटना ने उनके जीवन को बर्बाद करके रख दिया। उस समय वह केवल 17 साल की थीं,प्रमोदिनी राउल पर कुछ साल पहले एसिड अटैक हुआ था, जिसके बाद उन्होंने जीवन के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। जब उन पर तेजाब से हमला किया गया था, उनके शरीर का 80 फीसदी हिस्सा जल चुका था और इस हमले ने उनकी दोनों आंखें छीन ली थीं। और वह पूरी तरह से अंधी हो चुकी थीं। आर्मी के जवान के द्वारा उस पर सोलह साल की उम्र में एसिड अटेक किया था, जिसमें प्रमोदिनी का चेहरा बुरी तरह से झुलस चुका था। पांच साल तक इस लड़की ने लगातार अस्पताल के चक्कर लगाएं, एक तरफ गरीबी का संघर्ष था तो दूसरी ओर जीवन और मौत से लड़ाई जारी थीं। प्रमोदिनी हार कहां मानने वाली थी। प्रमोदिनी की गलती न होने पर भी इस गलती का खामियाजा जबरन उसे पुरी जिंदगी भुगतना पड़ेगा,कारण सिर्फ इतना था कि उसने आर्मी के शराबी व्यक्ति से शादी करने से साफ इंकार कर दिया।

कितनी अजीब बात है न, आपकी जेब में जब पैसे हो तो दुनिया आपकी औकात देखती है। और जब आपकी जेब में पैसे ना हो तब दुनिया अपनी “औकात दिखाती” है।

एसिड अटेक होने के बाद इसी समाज के द्वारा प्रमोदनी के चरित्र पर जहां बुरी तरह से संदेह किया गया और प्रश्न वाचक चिन्हों से आक्षेपों के कटघरों में खड़ा कर दिया गया। वहीं सभी रिश्तेदारों ने उसके हालातों से मूंह मोड़ लिया। कुछ ने तो यहां तक कह दिया कि प्रमोदिनी की ही ग़लती होंगी, इसने विरोध नहीं किया, और कुछ ने तो यह भी कह दिया की प्रमोदिनी ज्यादा अच्छा रहता कि तुम इसी आदमी से शादी कर लेती, कुछ इसी समाज के घनिष्ठ रिश्तेदारों ने तो यहां तक कह दिया कि इस लड़की का जीवन भर कब तक ध्यान रख पाओगें, क्यों न इसे जहर का इंजेक्शन देकर ही मार दे। यहां पर भी प्रमोदिनी अपने जीवन से हार कहां मानने वाली थी, वह एसिड अटैक होने के बाद भी कई सर्जरियां करवाने के बाद भी लगभग पांच साल तक बिस्तर पर लेटे लेटे मौत से संघर्ष करते हुए,आज जीवन की लड़ाई जीत चुकी है। प्रमोदिनी की जीवन की लड़ाई उन लोगों के लिए भी मशाल है जो परिस्थितियों से हारकर, अपनी जीवनलीला समाप्त कर देते हैं, और उन लोगों के लिए भी नींव का पत्थर कायम करतीं हैं, जो जीवन में होने वाली अकस्मात घटनाओं से घबराकर अपना मानसिक संतुलन खो देते हैं। प्रमोदिनी लड़ी और जब तक लडी जब तक वह मौत से नहीं जीत पायी, वह उस भयावह स्थिति से भी लड़ी जब तक कि उसने  उस एसिड अटैक से हमला करने वाले आर्मी मेन को सज़ा नहीं दिला दी।

प्रमोदिनी राउल 2009 में हुआ था एसिड अटैक

प्रमोदिनी ने कहा कि 18 अप्रैल 2009 को मुझ पर तेजाब फेंका गया था। उस समय सेना के जवान के तौर पर कार्यरत संतोष वेदांत ने शादी का प्रस्ताव रखा था लेकिन प्रमोदिनी ने मना कर दिया, जिसके बाद संतोष ने उसके चेहरे पर तेजाब फेंक दिया। उस समय प्रमोदिनी अपनी इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर रही थीं। प्रमोदिनी के कॉलेज के पास एक आर्मी कैंप था, जहां संतोष ने प्रमोदिनी को देखा था और शादी का प्रस्ताव रखा था। उस समय प्रमोदिनी की उम्र बहुत ही कम थी और वो आगे पढ़ना चाहती थी, इसलिए घरवालों ने शादी के लिए मना कर दिया। इसके बाद भी संतोष प्रमोदिनी का पीछा करता रहा और 2009 में संतोष ने प्रमोदिनी पर तेजाब फेंक दिया। प्रमोदिनी 17 साल की थीं, जब उन पर तेजाब से हमला किया गया था, उनके शरीर का 80 फीसदी हिस्सा जल चुका था और इस हमले ने उनकी दोनों आंखें छीन ली थीं।

प्रमोदिनी ने बताया कि एसिड हमला कितना पीड़ादायक होता है।

लगातार आर्मी मेन के शराब पीने के बाद किए गए फ़ोन और आएं दिन की गई ग़लत हरकतों का प्रमोदिनी और इनके परिवार द्वारा पुरजोर विरोध किया गया, आपस में समझाइश भी कि गई,एक साल तक आर्मीमेन ने प्रमोदिनी को बिल्कुल भी परेशान नहीं किया, पर एक दिन अचानक कॉलेज जाते हुए रास्ते में आर्मीमेन का आना हुआ और एसिड की पुरी बोतल खोलकर प्रमोदिनी के सर पर डाल दीं गई, सोलह साल मासूम सी बच्ची आकस्मिक इस तरह के हमले को समझ नहीं पाई, वह हतप्रभ रह गयी, उसे लगा शायद आर्मीमेन उसे परेशान करने के इरादे से जानबूझकर शराब की बोतल उस पर डाल कर चला गया है, उसे जलने का अनुभव तो कुछ देर बाद हुआ जो कुछ उसने महसूस किया प्रमोदिनी ने अपने शब्दों में स्वयं ने कहां-

वह भयावह खोफनाक मंज़र जिसे याद करते ही प्रमोदिनी आज भी सिहर जाती हैं।

1.पहले तो मुझे लगा की मुझ पर उबलता हुआ पानी, या शराब जानबूझकर डालीं गई है। मैं जमीन पर गिर गयी, तेजाब टपककर घास पर गिर रहा था और मैंने देखा की घास भी झुलसती जा रही है। मुझे भयंकर जलन हो रही थी और मेरे बालो से धुआं भी निकल रहा था ।

2.मेरे शरीर की चमड़ी शरीर से अलग हो कर नीचे गिर रही थी, धीरे धीरे मेरे  सिर के बाल भी टूटकर नीचे गिरने लग गये थे। मैं समझ नहीं पा रहीं थीं कि यह क्या हो रहा है, मेरे पुरे शरीर में भयंकर जलन हो रही थी, और मैं बस असहनीय पीड़ा से चिल्लाएं जा रही थी।

3.उस एसिड का इतना प्रभाव था की प्रमोदिनी की दोनों आंखें लगभग बाहर निकल चुकी थीं उसे लगभग दिखना बंद हो चुका था।

4.वह चिल्लाएं जा रही थी, और लगभग जबरदस्त कातर ध्वनि में, वह देख रहीं थीं, असहाय दृष्टि से उस भीड़ को जो उसे इस हालत में भी देखकर केवल उसके चारों ओर गोला बनाकर केवल और केवल मात्र तमाशा देखने के लिए एकत्रित थे, उसे बचाने के लिए कोई आगे नहीं बढ़ा।

5.वह महसूस कर रही थी उस विकराल मंज़र को, वह विभंत्सक दृश्य उसकी कल्पना से भी परे था, वह असहनीय दर्द के साथ चिल्लाएं जा रही थी,उस भीड़ के सामने जो दोषी न होने पर भी उसे दोषी करार दे रहीं थीं, इस नृशंस कृत्य करने वाले दोषी के सामने भी वह निढाल थीं, बस मात्र असहनीय दर्द से छुटकारा पाना चाह रही थी।

हालांकि इस हादसे को प्रमोदिनी ने अपने और अपनी जिंदगी के ऊपर हावी नहीं होने दिया। प्रमोदिनी के हौसलों में कोई कमी नहीं आई और उन्होंने खुद को अपने पैरों पर खड़े करने के लिए पूरी ताकत लगा दी।

प्रमोदिनी को तुरंत घर ले जाया गया, मां समझ नहीं पाई उसकी बच्ची के साथ क्या हो रहा है, तात्कालिक स्थितीं में वहां के डॉक्टर भी नहीं समझ पाएं कि इलाज़ क्या किया जाएं। कुछ दिनों प्रमोदिनी को बड़े हॉस्पिटल ले जाया गया जहाँ वो नौ महीने तक आई सी यू में रही। उस दौरान प्रमोदिनी ने जो तकलीफें सही उसे याद कर वह आज भी कांप उठती है।

प्रमोदिनी के ही शब्दों में, "मुझे एक बड़े से बाथटब में बैठाया जाता था जो डेटॉल जैसी तीख़ी महक वाली तरल दवाइयों से भरा होता था, उसमें मेरी ड्रेसिंग होती थी यानी मेरी स्किन उधेड़ी जाती थी,मैं दर्द से बदहवास सी हो जाती थी। चार-पांच नर्सें मुझे पकड़कर रखती थीं और डॉक्टर मुझसे माफ़ी मांगते हुए ड्रेसिंग करते हुए कहते थें कि बेटे अगर तुमने यह दर्द नहीं झेला तो जी नहीं पाओगी ”

उन हालतों में जब ना मूंह में जबान थी और नहीं, आंखों में पहचान, एकतरफा खामोशी से मेंने अपना हर दर्द मेरी मां के साथ सहन किया है।

इस सम्पूर्ण घटनाक्रम के बीच प्रमोदिनी की आंखों की रोशनी खत्म हो गई थी। नौ महीने बाद पैसे की कमी और दूसरी परेशानियों की वजह से प्रमोदिनी को घर वापस आना पड़ा | इस इलाज़ के दौरान अस्पताल का खर्च उठाने का और डॉक्टर को फिस देने के लिए भी उसकी मां के पास पैसे नहीं थे। घर पर अच्छे से देखभाल नहीं होने के कारण प्रमोदिनी के शरीर के घाव सड़ने लग गये थे,और उसमें से पस निकलने शुरू हो गये थे। फिर भी मां ने आस नहीं छोड़ी, मां अस्पताल से बेन्डेज, और दवाईयां लाकर भी घर पर ही प्रमोदिनी के गांवों को ठीक करने में लगीं हुईं थीं, पुरा इलाज नहीं मिलने के कारण घावों से इतना भंयकर दर्द हो रहा था कि वह पुरी रात उन घावों से निकल रहें पस की वजह से चिल्लाती रहती, फिर भी मां की हिम्मत थी जिसके प्रभाव से प्रमोदिनी ने जीवन जीने की आस नहीं छोड़ी। चार साल तक बिस्तर पर पड़े रहने के कारण प्रमोदिनी के घाव सड गए और उससे पस आने लग गए। जब घर में रहना मुश्किल हो गया तो फिर वापस प्रमोदिनी को अस्पताल में भर्ती कराया गया। यहाँ उनकी दोस्ती कुछ नर्सो से हो गयी।

सब कुछ खत्म तब तक नहीं होता है जब तक आपका जीवन बचा हुआ है।

कहते हैं न दुःख के बादल हमेशा नहीं रहते हैं कभी न कभी तो छंटते ज़रूर है। प्रमोदिनी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। एक दिन हॉस्पिटल की नर्स प्रमोदिनी से मिलवाने एक शख्स को ले आई जिसका नाम था -सरोज साहू । सरोज को प्रमोदिनी से कुछ ऐसी हमदर्दी हुई कि उन्होंने दो महीने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी और रात-दिन उनकी देखभाल करने लगे। प्रमोदिनी स्वयं बतातीं है-

”सरोज ने डॉक्टर से पूछा था कि मैं चलना कब शुरू करूंगी,डॉक्टरों का कहना था कि यह एक साल से पहले संभव नहीं हो पाएगा। लेकिन सरोज ने खुद को चुनौती दी और कहां कि वो प्रमोदिनी को चार महीने में चलाकर दिखाएंगे। उनकी मेहनत रंग ला रही थी और दोस्ती भी। सरोज ने कर दिखाया चार महीने के अन्दर प्रमोदिनी बिना किसी सहारा के चलने फिरने लग गई ।


कठिनाई से भरे रास्ते भी आसान हो जाते है, हर राह पर पहचान हो जाती है,जो लोग करते है समस्या का सामना मुस्कुरा कर, जिंदगी में किस्मत भी उनकी गुलाम बन जाती है।

स्टॉप एसिड अटैक’ संस्था ने किया प्रमोदिनी से संपर्क

खुशकिस्मती से इस बीच ‘स्टॉप एसिड अटैक’ नाम की संस्था ने प्रमोदिनी से संपर्क किया। 2016 के अंत तक प्रमोदिनी आगरा आ चुकी थीं और शीरोज़ कैफ़े में काम करना शुरू कर दिया था।


किस्मत से लड़ने में भी अलग ही मजा है। वो कोशिश करती रहती है मुझे हराने की। पर मुझे हारना आता नहीं।

आंख का हुआ सफल ऑपरेशन

जुलाई 2017 में प्रमोदिनी के आँखों का ऑपरेशन चेन्नई के एक अस्पताल में हुआ। ऑपरेशन सफल रहा और जहां प्रमोदिनी को कुछ धुंधली आकृतियां दिखाई देने लगी। उन्होंने बताया,"ऑपरेशन के बाद मैं पूरी तरह ख़ुश नहीं थी, मैंने सोचा था कि सब कुछ साफ दिखने लगेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ, डॉक्टरों ने धीरे-धीरे सुधार होने के बाद वापस आंखों में रोशनी आने का भरोसा दिलाया था लेकिन मुझे ज़्यादा उम्मीद नहीं थी। ऑपरेशन के बाद वापस आगरा जाने के लिए प्रमोदिनी और सरोज प्लेन में बैठे। फ़्लाइट ने अभी टेकऑफ़ नहीं किया था की अचानक प्रमोदिनी को रंग दिखाई देने लगे और नज़र भी धीरे-धीरे साफ होने लगी। प्रमोदिनी स्वयं खुश होते हुए बताती है कि अचानक उसे सब कुछ एकदम साफ दिखने लगा, वह खुश होकर चिल्लाई, क्योंकी उनकी अब आंखों की रोशनी आ चुकी थी।

प्रमोदिनी ने पुलिस में संतोष के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई ।

लेकिन 2012 तक पुलिस को उसके खिलाफ कोई सुराग नहीं मिला। इसके बाद यह मामला बंद हो गया लेकिन सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद तात्कालिक मुख्यमंत्री ने प्रमोदिनी से मुलाकात की और दोबारा जांच के आदेश दिए। 2017 में संतोष को गिरफ्तार कर लिया गया और वो अभी तक जेल में बंद है।



वो जो शोर मचाते हैं भीड़ में,भीड़ ही बनकर रह जाते हैं,

वहीं पाते हैं जिंदगी में सफलता, जो ख़ामोशी से अपना काम कर जाते हैं।

इसी कठिन दौर में उनके जीवन में आए सरोज। फिर जीवन के उस दौर की शुरु्आत हुई जिसे अब मुकाम मिला है। दोनों की शादी 1 मार्च को हुई। प्रमोदिनी के ही शब्दों में, मेरे ऊपर 18 अप्रैल 2009 को एसिड अटैक हुआ था,उसके बाद 2014 में मैं सरोज साहू से मिली। तब मेरा ईलाज चल रहा था। सरोज से दोस्ती हुई और अब शादी। इस पूरे दौर में उन्होंने मुझे काफी सहयोग दिया। प्रमोदिनी की उम्र 29 साल है और उन्होंने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों की मौजूदगी में सरोज साहू से शादी कर ली।



अच्छा काम करते रहो "अच्छा काम करते रहो कोई सम्मान करे या न करे, सूर्योदय तब भी होता।

अपनी हिम्मत और परिस्थितियों से मुकाबला और एक लय से उससे लड़ना, और वापस अपनी जीवटता को बनाएं रखना प्रमोदिनी इसका जीवट उदाहरण है।

Listen her recent "TUF Talk" with us.

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हिम्मत को परखने की गुस्ताखी न करना, पहले भी कई तूफानों का रुख मेरी हिम्मत से ही मुड़ चुका है। - प्रमोदिनी राउल।


Dr.Nitu  Soni

I am a Ph.D. in Sanskrit and passionate about writing. I have more than 11 years of experience in literature research and writing. Motivational writing, speaking, finding new stories are my main interest. I am also good at teaching and at social outreach.

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