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"सुकून-ए-ज़िंदगी" खरीद ली है मैंने..!!

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जीवन में हारना या जीतना जरूरी नहीं होता है, इस जीवन को खेलना ज़रूरी होता है। जीवन जीने के लिए ही मिलता है,पर कुछ लोग इसे सोचते सोचते ही गुज़ार देते हैं, और अंत में कहते हैं अरे भाई हां...अब करता करें ? हां भाई हां, हमारी तो पुरी जिंदगी ऐसे ही गुज़र गई।अंत में कुछ भी तो हाथ नहीं आया। हम इसी निराशा में सुकून-ए-जिंदगी तलाशते रहते हैं, पर यह सुकून हमें कहां मिलेगा।

"सुकून-ए-ज़िंदगी" खरीद ली है मैंने...

रुई का गद्दा बेच कर

मैंने इक दरी खरीद ली,

ख्वाहिशों को कुछ कम किया मैंने

और ख़ुशी खरीद ली ।


सबने ख़रीदा सोना

मैने इक सुई खरीद ली,

सपनो को बुनने जितनी

डोरी ख़रीद ली ।


मेरी एक खवाहिश मुझसे

मेरे दोस्त ने खरीद ली,

फिर उसकी हंसी से मैंने

अपनी कुछ और ख़ुशी खरीद ली ।


इस ज़माने से सौदा कर

एक ज़िन्दगी खरीद ली,

दिनों को बेचा और

शामें खरीद ली ।


शौक-ए-ज़िन्दगी कमतर से

और कुछ कम किये,

फ़िर सस्ते में ही

"सुकून-ए-ज़िंदगी" खरीद ली ।


ज़रूरी यह नहीं की आप कितना जीतें है, जरूरी यह है कि आप अपना जीवन सुकून से कैसे जीते हैं।

इसलिए तो कहां है, कटना हैं, उलझना है, गिरना है जमीं पे,

गिरने से पहले छू- लू आसमां का किनारा"सुकून-ए-ज़िंदगी" खरीद ली है मैंने...!!


Dr.Nitu  Soni

I am a Ph.D. in Sanskrit and passionate about writing. I have more than 11 years of experience in literature research and writing. Motivational writing, speaking, finding new stories are my main interest. I am also good at teaching and at social outreach.

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