आगे बढ़ते रहना, इसी क्रम में उपर उठने की चेष्टा करना,एक नैसर्गिक नियम है। नदियां दौड़ रही है, वायु बह रही है, पौधे उपर बढ़ रहे हैं, जब प्रकृति के जड़ पदार्थ दिन रात निरन्तर अग्रसर होने में तल्लीन हैं तो चेतन पदार्थ क्यो नही। ईश्वर उनकी भी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करते हैं। जैसा कि एक कवि की कुछ पंक्तियां हमारी सकारात्मक सोच को प्रत्यक्ष रूप में उजागर करने का ही प्रयास है।
उड़ चल, हारिल / अज्ञेय
उड़ चल, हारिल, लिये हाथ में यही अकेला ओछा तिनका।
ऊषा जाग उठी प्राची में-कैसी बाट, भरोसा किन का!
शक्ति रहे तेरे हाथों में-छुट न जाय यह चाह सृजन की;
शक्ति रहे तेरे हाथों में-रुक न जाय यह गति जीवन की!
ऊपर-ऊपर-ऊपर-ऊपर-बढ़ा चीरता जल दिड्मंडल
अनथक पंखों की चोटों से नभ में एक मचा दे हलचल!
तिनका? तेरे हाथों में है अमर एक रचना का साधन-
तिनका? तेरे पंजे में है विधना के प्राणों का स्पन्दन!
काँप न, यद्यपि दसों दिशा में तुझे शून्य नभ घेर रहा है,
रुक न, यदपि उपहास जगत् का तुझ को पथ से हेर रहा है;
तू मिट्टी था, किन्तु आज मिट्टी को तूने बाँध लिया है,
तू था सृष्टि, किन्तु स्रष्टा का गुर तूने पहचान लिया है!
मिट्टी निश्चय है यथार्थ, पर क्या जीवन केवल मिट्टी है?
तू मिट्टी, पर मिट्टी से उठने की इच्छा किस ने दी है?
आज उसी ऊध्र्वंग ज्वाल का तू है दुर्निवार हरकारा
दृढ़ ध्वज-दंड बना यह तिनका सूने पथ का एक सहारा।
मिट्टी से जो छीन लिया है वह तज देना धर्म नहीं है;
जीवन-साधन की अवहेला कर्मवीर का कर्म नहीं है!
तिनका पथ की धूल, स्वयं तू है अनन्त की पावन धूली-
किन्तु आज तू ने नभ-पथ में क्षण में बद्ध अमरता छू ली!
ऊषा जाग उठी प्राची में-आवाहन यह नूतन दिन का
उड़ चल हारिल, लिये हाथ में एक अकेला पावन तिनका!
जीवन की कठिन से कठिन परिस्थितियों को भी हल कर सकने का विश्वास ही हमारी सकारात्मक सोच है। मुश्किल से मुश्किल दौर में भी हिम्मत बनाए रखना हमारे सकारात्मक सोच की ही शक्ति है। महानता की बूंदें एकत्रित करके ही हम लघुता का घड़ा भर सकते हैं।