जग को जीवन देने वाली मौत भी तुझसे हारी हैं...!!
बिल्ला नंबर 36 वाली महिला कुली संध्या मरावी।
कहते हैं कि औरत एक पुरुष से ज़्यादा मज़बूत और कुशल होती है। आज जब हर जगह नारीवाद और महिला सशक्तिकरण की बात हो रही है, ऐसे में जबलपुर की एक महिला इस बात को सच साबित करने में लगी हुई है, दरअसल हम बात कर रहे हैं संध्या मरावी की, संध्या के जज़्बे को देखकर आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि शायद यहीं असली महिला सशक्तिकरण ही हैं।
अपमान मत करों नारियों का इनसे जग चलता है, पुरूष जन्म लेकर भी तो इन्हीं के गर्भ में ही तो पलता है।
महिला कुली की एक वायरल सोशल मीडिया पोस्ट, अन्यथा पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान पेशा, देश भर के रेलवे स्टेशनों पर कुलियों या कुलियों द्वारा पहनी जाने वाली सर्वोत्कृष्ट लाल शर्ट पहने एक महिला की तस्वीरें, यह है एक सशक्त महिला कुली संध्या मरावी। जिनके चेहरे पर कड़ी मेहनत और समर्पण का भाव साफ़ प्रकट हो रहा है।
जीवन की कला को अपने हाथों से निखार कर, नारी ने सभ्यता और संस्कृति का रूप निखारा है। नारी का अस्तित्व ही सुंदर जीवन का आधार है।
मिलिएं संध्या मरावी से, एक सशक्त महिला कुली जो अपने परिवार के लिए कमाई करने के लिए स्टीरियोटाइप तोड़ रही हैं। जनवरी 2017 से ही , वह पुरुषों की तरह अपने सिर और कंधों पर यात्रियों के सामान का भार उठा रहीं है। स्टेशन पर 40 पुरुष कुलियों में वह अकेली महिला कुली हैं।
नारी तुम प्रेम, आस्था, और विश्वास हो। टूटी हुई उम्मीदों की एकमात्र आस हों।
35 वर्षीय महिला संध्या मरावी भारत की पहली महिला कुली हैं जो रूढ़ियों को भी तोड़ रही हैं। वह मध्य प्रदेश के जबलपुर में कटनी जंक्शन से बाहर काम करती है और संभावना है कि किसी भी दिन उसे रेलवे स्टेशन के अंदर और बाहर यात्रियों के भारी भरकम बैग उठाते हुए देखा जा सकता हैं।
नारी तेरा हर रूप निराला हैं, तुझमें ही असीम आकाश और पृथ्वी की शांति, सम्पन्नता और सहिष्णुता समायी हैं।
मध्यप्रदेश के जबलपुर के पास कटनी जंक्शन पर काम करने वाली संध्या मरावी पेशे से कुली हैं, यह भी कयास लगाया जा रहा है कि वह ना सिर्फ मध्य प्रदेश बल्कि देश की भी पहली महिला कुली हैं, 35 वर्षीया महिला कुली संध्या के पति भोलाराम की बीमारी के बाद 22 अक्टूबर 2016 को मौत हो गई थी। संध्या ने विषम परिस्थिति में भी हिम्मत नहीं हारी और बच्चों की खातिर खुद को संभाला। संध्या के पति भी कुली थे और उनकी मृत्यु हो जाने के बाद बच्चों का लालन-पालन बहुत ही मुश्किल से हो पा रहा था,अक्सर ऐसा भी हुआ जब कि उन लोगों को कई दिनों तक खाना नहीं मिल पाया हों। अपने बच्चों की दुर्दशा और परेशानियां देखकर संध्या ने जनवरी 2017 में अपने पति की जगह पर कुली का काम करना शुरू कर दिया।
पति के देहांत के बाद से वह रसोई और ट्रेन के प्लेटफार्म पर काम करते हुए अपने बच्चों की देखभाल कर रही है। तीन छोटे बच्चों को पालने और उनके लिए भोजन की व्यवस्था करने की चिंता उसे सता रही थी लेकिन उसने हार नहीं मानी। इसके बजाय, संध्या ने कुली बनने और अपने परिवार के कल्याण के लिए पैसे कमाने का फैसला किया। हर शाम वह कुंडम से जबलपुर और फिर कटनी रेलवे स्टेशन तक 45 किलोमीटर की यात्रा का प्रबंधन करती है।
जिम्मेदारियों संग नारी भर रहीं हैं उड़ान, ना कोई शिकायत ना कोई थकान।
जंक्शन पर मौजूद 40 पुरुष कुलियों के बीच वह अकेली महिला कुली हैं, काम शुरू करने के बाद से ही संध्या अपने साथी पुरुष सहयोगियों की तरह ही कंधे और सिर पर सामान उठाकर ले जाती हैं,
परिवार की पालनहार भी, गर्व भी
संध्या के परिवार में उनके तीन बच्चे और एक सास हैं, उनका बड़ा बेटा साहिल 8 साल का है और छोटा बेटा हर्षित 6 साल का है, संध्या की बेटी पायल 4 साल की है। वह अपने तीनों बच्चों को उच्च शिक्षा देना चाहती हैं, संध्या कहती हैं कि अगर मेरी मेहनत से मेरे बच्चे पढ़-लिख गए तो वह एक बेहतर भविष्य बना लेंगे, संध्या की सास को भी उन पर गर्व है, संध्या की सास ने कहां, मुझे बेटे के जाने का दुःख तो हुआ मगर मेरी बहू मेरे लिए बेटे से कम नहीं हैं।
नारी के जज्बे को सलाम
जहां एक तरफ महिलाएं परिस्थितियों से हारकर कुछ ग़लत निर्णयों की और पलायन करतीं हैं, वहीं संध्या मरावी के क़दम उन विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी स्वयं की मेहनत से मजबूत नींव साबीत हुए। संध्या मरावी के जज्बे और मेहनत को नारी सशक्तिकरण की मिसाल कह सकते हैं। संध्या ने विषम परिस्थिति में भी हिम्मत नहीं हारी और बच्चों की खातिर खुद को संभाला।
औरत मोहताज नहीं किसी ग़ुलाब कीं, वह तो खुद बागबान है इस कायनात कीं...!!