जिधर देखिए लोग भाग रहे हैं, दौड़ रहे हैं। जिंदगी में इतनी भागदौड़ है कि लोगों के पास अपनों के लिए भी वक्त नहीं है। मन में प्रेम है लेकिन उसे अभिव्यक्त करने के लिए समय नहीं है। लोग खुश रहने से ज्यादा खुश दिखने में विश्वास करते हैं ऐसे में आपस में गलतफहमियां भी हो जाती है। कई बार हम अपने आप को अभिव्यक्त नहीं कर पाते। अभिव्यक्ति अर्थात मन के विचारों, भावों को प्रकट करना।
प्रेमचंद ने लिखा है,"अभिव्यक्ति मानव हृदय का स्वाभाविक गुण है।"
रिश्तो में, प्रेम में अभिव्यक्ति बहुत मायने रखती है। कभी-कभी ऐसा होता है कि दो व्यक्ति आपस में बहुत प्रेम करते हैं उन्हें पता भी होता है कि एक दूसरे से बहुत प्रेम करते हैं फिर भी कभी-कभी हमारा मन चाहता है कि सामने वाला हमारे सामने इस प्रेम को प्रकट करें। प्रेम किसी से भी हो सकता है। प्रेम तो एक पवित्र भावना है यह तो हम पर निर्भर करता है कि हम उस प्रेम को किस दृष्टि से देख रहे हैं। माता-पिता, भाई ,बहन, पति, प्रेमी, बच्चे सभी में कहीं ना कहीं यह चाह होती है कि उनके सामने उनके प्रति प्रेम को प्रकट किया जाए। हालांकि यह कहा जाता है की प्रेम को प्रकट करने की आवश्यकता नहीं है। यह तो महसूस किया जाता है, आंखों में दिखता है, लेकिन कभी-कभी इसे अभिव्यक्त करना बहुत अच्छा लगता है।
एक छोटी बच्ची थी। वह हमेशा यह सोचती थी कि उसके पिता उसे प्रेम नहीं करते। दूसरे बच्चों को वह देखती उनके पिता उन्हें गोदी में लेते, कभी घोड़ा बनते, उनके साथ खेलते, पर उसके पिता ऐसा कुछ भी नहीं करते थे। दोनों में बातचीत भी शायद ही होती होगी। बस ज्यादा से ज्यादा यह पूछ लेते पढ़ाई कैसी चल रही है, परीक्षा कब होगी। पिता पुत्री की हर इच्छा पूरी करते, जो चाहिए वह उसे लाकर देते, पुत्री भी पिता की जरूरतों का पूरा ध्यान रखती, सम्मान करती थी बस दोनों ने शब्दों से कभी अपने प्रेम को अभिव्यक्त नहीं किया था। उस बच्ची को यही लगता था कि उसके पिता को उससे बिल्कुल प्रेम नहीं है इसी सोच के साथ वह बड़ी हुई। एक दिन उसके जीवन में कुछ ऐसी परिस्थितियां आई जब सब ने उसका साथ छोड़ दिया सब उसके विरोध में खड़े थे। उसे लगा कि पिता तो पहले ही उस से प्रेम नहीं करते। धीरे-धीरे वह परिस्थितियों से लड़ती हुई आगे बढ़ने लगी। कुछ समय पश्चात दोनों पिता पुत्री को एहसास हुआ कि दुनिया में सबसे ज्यादा प्रेम ही वे दोनों एक दूसरे से करते हैं जिसके लिए वह जीवन भर इंतजार कर रहे थे वह प्रेम तो पहले से ही उनमे मौजूद था। बस उसे महसूस करने में बरसो लग गए क्योंकि प्रेम को अभिव्यक्त नहीं किया गया, प्रकट ही नहीं किया गया। ऐसा नहीं था कि पिता-पुत्री मे प्रेम नहीं था।
प्रत्येक व्यक्ति का प्रेम को प्रदर्शित करने का तरीका अलग होता है। हालांकि जरूरी नहीं कि प्रेम को शब्दों में अभिव्यक्त किया जाए। परंतु यह भी सही है कि हर कोई मौन अभिव्यक्ति को समझ नहीं पाता।आश्चर्य की बात यह है कि पिता पुत्री दोनों ही इसे समझ गए, महसूस कर लिया पर अभी भी वह प्रेम मौन ही है किसी ने भी आगे होकर अभिव्यक्त नहीं किया। दोनों में बातचीत अभी भी कम ही होती है। इसे चाहे हम झिझक समझे या सम्मान दोनों में से किसी ने पहल नहीं की अपने प्रेम को अभिव्यक्त करने की।
यह स्थिति किसी भी रिश्ते के साथ हो सकती है। आजकल अधिकतर रिश्तो में हम तनाव देखते हैं, गलतफहमियां देखते हैं वह इसी वजह से क्योंकि हम अपने विचारों को सामने वाले को प्रकट नहीं कर पाते हैं। अपने आप को अभिव्यक्त नहीं कर पाते हैं। कई बार हम जरूरत नहीं समझते हमें लगता है कि यह तो पता ही है उसे और कई बार हमारा अहम या झिझक आगे आ जाती है। हमें लगता है मैं पहले क्यों स्वीकार करू। सामने वाला नहीं कह रहा है तो आप कह दो, रिश्तों में मुकाबला नहीं किया जाता। अपने प्रेम को प्रकट करने के लिए यह अहम क्यों बीच में आता है।
प्रेम तो एक पवित्र भावना है जो यह बताती है कि आप में मानव संवेदनाएं हैं। कभी-कभी सिर्फ प्रेम का होना काफी नहीं होता उसे प्रकट करना, शब्दों में प्रदर्शित करना जरूरी हो जाता है। इससे हमारा आपसी प्रेम और अधिक मजबूत होता है फिर चाहे वह प्रेम पति से हो, बच्चों से हो, माता-पिता या दोस्तों से हो। रिश्तो को मजबूत बनाने के लिए उसे हमेशा जीवंत बनाए रखने के लिए समय-समय पर दूसरों के प्रति अपने प्रेम को उनके सामने प्रदर्शित करें, अभिव्यक्त करें, इसमें अपने अहम को आगे ना आने दे। प्रेम के आगे, अपनों के आगे अहम, विचारों का टकराव कोई मायने नहीं रखता।
किसी ने खूब कहा है -
"मैले हो जाते हैं रिश्ते भी लिबासों की तरह,
कभी-कभी इनको भी मोहब्बत से धोया कीजिए।"